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Sunday, 14 March 2021


 धर्म क्या है मेरी दृष्टि में 


*धर्म* यानि जो धारण  करने योग्य हो

 क्या धारण किया जाय  सदाचार, संयम,

 सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि


धर्म इतना मूल्यवान है...,

कि उसकी आवश्यकता सिर्फ किसी समय विशेष के लिए ही नहीं होती, अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।

बस सही धारण किया जाय।


गीता का सुंदर  ज्ञान पार्थ की निराशा से अवतरित हुवा ।

कहते हैं कभी कभी घोर निराशा भी सृजन के द्वार खोलती है। अर्जुन की हताशा केशव के मुखारविंद से अटल सत्य बन

 करोड़ों शताब्दियों का अखंड सूत्र बन गई।


विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।

 चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....


पार्थ की हुंकार थम गई अपनो को देख,

बोले केशव चरणों में निज शीश धर

मुझे इस महापाप से मुक्ति दो हे माधव

कदाचित मैं एक बाण भी न चला पाउँगा ,

अपनो के लहू पर कैसे इतिहास रचाऊँगा,

संसार मेरी राज लोलुपता पर मुझे धिक्कारेगा

तब कृष्ण की वाणी से श्री गीता अवतरित हुई ।

कर्म और धर्म के मर्म का वो सार ,

युग युगान्तर तक  मानव का

मार्ग दर्शन करता रहेगा ।

आह्वान करेगा  जन्म भूमि का कर्ज चुकाने का

मां की रक्षा हित फिर देवी शक्ति रूप धरना होगा

केशव संग पार्थ बनना होगा ,

अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध

लड़ना होगा।


               कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'



25 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर ।

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  2. आपकी रचना एक सुंदर दृष्टांत की तरफ ले गई, जो जीवन का अतुलित खजाना है,और जो हर क्षण परिलक्षित होता है,पर हमारी मूढ़ चेतना वहां पहुंचने में नाकामयाब रहती है, उम्दा कृति के लिए आपको बधाई ।

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    1. आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी ने रचना के भावों को समर्थन और स्पष्टता देकर लेखन को नव उर्जा प्रदान की है जिज्ञासा जी ।
      मैं बहुत बहुत आभारी हूं ,ऐसी टिप्पणियां रचनाकार के लिए संजीवनी होती है।
      सस्नेह आभार आपका।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
      चर्चा मंच पर रचना रखने के लिए हृदय से शुक्रिया।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  6. धर्म यानि जो धारण करने योग्य हो

    क्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,

    सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि

    बिल्कुल सही फरमाया आपने

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  7. काश! सभी समझ पाते
    लाज़बाब भावाभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत आभार आपका बहना ।
      रचना के भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. धर्म की शाश्वत उपयोगिता को दर्शाता हुआ सुंदर आलेख

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी।
      रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  9. कृष्ण की वाणी से श्री गीता अवतरित हुई ।
    कर्म और धर्म के मर्म का वो सार ,
    युग युगान्तर तक मानव का
    मार्ग दर्शन करता रहेगा ।
    धर्म को परिभाषित करता सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  10. बहुत ही सुंदर सार्थक व्याख्या धर्म की।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता जी।
      सस्नेह।

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  11. धर्म के बारे में तुलसीदास जी ने सटीक कहा है परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई

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  12. जी सही सटीक कहा आपने ।
    सादर आभार आपका।

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  13. बहुत सुंदर और सार्थक रचना सखी 👌

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  14. धर्म इतना मूल्यवान है...,

    कि उसकी आवश्यकता सिर्फ किसी समय विशेष के लिए ही नहीं होती, अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।

    बस सही धारण किया जाय।
    बहुत गहन विषय चुना है आपने . विषम परिस्थिति में भी सही का साथ देना धर्म है . सटीक व्याख्या

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  15. अप्रतिम परिभाषा की है धर्म की ,
    वर्णणातीत , शब्द खो जाये इतना गाहरा राज है । आपके पोस्ट में

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