छंद मुक्त
निसर्ग महा दानी
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी
आज सुनाऊं मैं तुझ को
मन की एक कहानी।
तुम कितने नाजुक सुंदर हो
खुश आजाद परिंदे
अपने मन का खाते पीते
उड़ते रहते नभ में
अमोल कोष लुटाता रहता
है निसर्ग महा दानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
नही फिक्र न चिंता करते
नीड़ कभी जो रौंदा
तिनका-तिनका जोड़ बनाते
फिर एक नया घरौंदा
करते रहते कठिन परिश्रम
तुम सा मिला न ध्यानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
आज चाहिए उतना लेते
संग्रह कभी न करते
प्रसन्न मन कलरव करते
चिंता मुक्त चहकते
सब कुछ जग में है नश्वर
एक बात तूने जानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
काश मनु भी तुम से
सीख कोई ले पाता
चारों ओर अमन रहता
गीत खुशी के गाता
प्रीत चुनरिया फिर लहराती
रंग धरा का धानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
न दंगा न बलवा होता
लूटपाट न डाका
न कोई शासित होता
सब अपने अपने राजा
बैठ बजाते चैन बांसुरी
हठी न कोई होता मानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
लेकिन ऐसा नही है प्यारे
राग द्वेष से भरा ज़माना
चहुं दिशा अफरातफरी है
नही शांति का ताना बाना
सब कुछ छोड़ जगत से जाना
क्यों न समझे अज्ञानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
चल उड़ जा नील गगन में
संदेश अमन का गा तू
मधुर-मधुर अपनी तानों से
प्रेम सुधा बरसा तू
सरस सुकोमल भाव तुम्हारे
समता रस के ज्ञानी।।
ओ पंछी तू बैठ हथेली
चुगले दाना पानी।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसंग्रह करने की बात ही तो सब तबाही की जननी है।
ReplyDeleteबहुत लाज़वाब।
बहुत बहुत आभार आपका,रचना के भावों को समर्थन मिला।
Deleteसादर।
बहुत ही भाव भरा निर्गुण गीत..सुंदर आध्यात्मिक दर्शन..
ReplyDeleteढेर सा आभार जिज्ञासा जी रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
प्रिय कुसुम बहन , जीवन में संतोषभाव से जीना कोई पक्षियों से सीखे | उन्हें जितना जरूरत हो उतना ही लेते हैं और उसी में खुश रहकर जीवन बिताते हैं | पर इंसान अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा लेना और उससे भी अधिक संग्रह करना चाहता है | काश पक्षियों से यही गुण ग्रहण करता तो प्रकृति आज भी अपने सुन्दरतम रूप में होती | पक्षी से संवाद के बहाने बहुत बड़ी बात लिख दी आपने | हादिक स्नेह और शुभकामनाओं के साथ |
ReplyDeleteसुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी रेणु बहन, रचना के समानांतर भावों को स्पष्ट करती समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका रेणु बहन।
सस्नेह।
शीर्षक को एक बार फिर से चैक करलें बहना |
ReplyDeleteजी रेणु बहन बहुत बहुत आभार आपका, असावधानी से चूक रहे गई आपने ध्यान दिलाया तभी सुधार किया।
Deleteबहुत बहुत आभार बहना।
सदा स्नेह सहयोग बनाए रखियेगा।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
बहुत खूब सुंदर रचना !🙏
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला,और लेखनी को नव उर्जा ।
सादर आभार आपका।
ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका आदरणीय।
पंछी के माध्यम से आज के हालात की सटीक व्याख्या
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आपकी व्याख्या से रचना के भाव मुखरित हुए ।
Deleteसस्नेह।
काश मनु भी तुम से
ReplyDeleteसीख कोई ले पाता
चारों ओर अमन रहता
गीत खुशी के गाता
प्रीत चुनरिया फिर लहराती
रंग धरा का धानी।।
काश !! बहुत ही सुंदर सीख देती रचना,सादर नमन आपको कुसुम जी
सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया कामिनी जी,रचना में नव उर्जा का संचार करती।
Deleteसस्नेह।
बेहतरीन रचना सखी 👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteसस्नेह।
चल उड़ जा नील गगन में
ReplyDeleteसंदेश अमन का गा तू
मधुर-मधुर अपनी तानों से
प्रेम सुधा बरसा तू
वाह
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteलेखन को नव उर्जा।
सादर आभार आपका आदरणीय।
बहुत बहुत आभार आपका पाँच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteलाजवाब, बहुत ही प्यारी रचना , पंछी मानव को मूलमंत्र दे जाते है , जीना सिखाते है , सादर नमन, महिला दिवस की आपको बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी आपको भी महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।