बाल कविता।
मुनिया और गौरेया
आँगन में नीम एक
देता छाँव घनेरी नेक
हवा संग डोलता
मीठी वाणी बोलता
गौरेया का वास
नीड़ था एक खास
चीं चपर की आती
ध्वनि मन भाती
हवा सरसराती
निंबोलियाँ बिखराती
मुनिया उठा लाती
बड़े चाव से खाती
कहती अम्मा सब अच्छे हैं
पर ये पंछी अक्ल के कच्चे हैं
देखो अनपढ़ लगते मोको
कहदो इधर उधर बीट न फेंको
सरपंच जी तक बात पहुंचा दें
इनके लिये शौचालय बनवा दें
अगर करे ये आना कानी
जहाँ तहाँ करे मन-मानी
साफ़ करो खुद लाओ पानी
तब इन्हें भी याद आयेगी नानी।
(मुनिया एक देहाती लड़की जो आंगन में झाड़ू लगाती है हर दिन।)
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को "फागुन की सौगात" (चर्चा अंक- 4012) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
सादर उपस्थित रहूंगी।
हा हा हा...
ReplyDeleteअरे वाह दी कितनी प्यारी कविता लिखी है आपने..मासूम बिल्कुल गौरेया जैसी।
अंतिम पंक्तियों तक आते आते हँसी छूट पड़ी।
दी ऐसी मनोहारी कविता की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर
स्नेह।
पसंद आई आपको लिखना सार्थक हुआ बहना।
Deleteचिरैया दिवस पर नौनिहालों के पसंद का सृजन ।
सस्नेह आभार।
बहुत ही सुन्दर।🌻
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteसादर।
बहुत ही प्यारी रचना कुसुम जी, बधाई हो आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।
Deleteउत्साहवर्धन करती टिप्पणी।
सस्नेह।
साफ़ करो खुद लाओ पानी
ReplyDeleteतब इन्हें भी याद आयेगी नानी।
मजेदार,बाल मन की ये बड़ी परेशानी,सुंदर मनमोहक सृजन कुसुम जी,सादर नमन आपको
ढेर सा आभार आपका कामिनी जी।
Deleteरचना को प्रवाह मिला आपकी उपस्थिति से ।
सस्नेह।
प्यारी कविता ! बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी ।
Deleteसादर।
बहुत दिलचस्प..।
ReplyDeleteबालमन की नाजुक सी, ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...। साधुवाद 🙏
बहुत बहुत आभार आपका वर्षा जी।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
अगर करे ये आना कानी
ReplyDeleteजहाँ तहाँ करे मन-मानी
साफ़ करो खुद लाओ पानी
तब इन्हें भी याद आयेगी नानी।
बाल सुलभ भावों की अनुपम अभिव्यक्ति । बहुत खूबसूरत सृजन कुसुम जी।
मीना जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
Deleteसदा स्नेह आकांक्षी।
सस्नेह।
देखो अनपढ़ लगते मोको
ReplyDeleteकहदो इधर उधर बीट न फेंको
बालसुलभ मन के मासूम भावों पर लिखी लाजवाब मनभावन कृति
वाह!!!
ढेर सा आभार आपका सुधा जी ।
Deleteआपकी स्नेहिल सराहना सदा मेरा आत्म विश्वास बढ़ाती है ।
सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसादर।
चिड़िया को मध्यम बना आपने चिड़िया के संरक्षण के साथ साथ स्वचता का भी सांसद दे दिया ।सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह सखी आपने रचना के अंतर निहित भावों को विस्तार दिया।
ReplyDeleteस्नेह आभार।
नाजुक सी बालमन की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशानदार कविता
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