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Tuesday, 23 March 2021

चौपाई अष्टक।


 विधा चौपाई छंद


१चंदन वन महके महके से

पाखी सौरभ में बहके से

लिपट व्याल बैठे हैं घातक

चाँद आस में व्याकुल चातक।।


२रजनी आई धीरे धीरे

इंदु निशा का दामन चीरे

नभ पर सुंदर तारक दल है

निहारिका झरती पल पल है।।


३निशि गंधा से हवा महकती 

झिंगुर वाणी लगे चहकती

नाच रही उर्मिल उजियारी

खिली हुई है चंपा क्यारी ।।


४नवल मुकुल पादप पर झूमे

फूल फूल पर मधुकर घूमे।

कोयल बोल रही उपवन में

हरियाली छाई वन वन में ।।


५बागों में बहार मुस्काई

पुष्पों पर रंगत सी छाई।

सौरभ फैली हर इक कण में

भरलो झोली पावन क्षण में।


६शाख सुमन के हार पड़े हैं

माणिक मोती लाल जड़े हैं।

लो तितली आई मन भावन

फैले सुंदर दृश्य  लुभावन।।


७विषय मोह में उलझा प्राणी

कौन मिलेगा शीतल त्राणी

गलत राह पर बढ़ता आता

उर से कभी न लालच जाता।।


८पतन राह का जो अनुरागी 

तृष्णा की बस चाहत जागी

दहक रहा दावानल जैसा

शीतलता देता बस पैसा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

24 comments:

  1. बागों में बहार मुस्काई
    पुष्पों पर रंगत सी छाई।
    सौरभ फैली हर इक कण में
    भरलो झोली पावन क्षण में।
    बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी विशेष टिप्पणी रचना को प्रवाह देती है।
      सस्नेह।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

      Delete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-03-2021 को चर्चा – 4,016 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना का रखने के लिए।
      सादर।

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  4. सुंदर काव्य सुमन सादर किया है ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      आपकी सराहना से सचमुच लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  6. असाधारण काव्य सृजन मुग्धता बिखेरती है - - साधुवाद सह।

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    1. मैं अभिभूत हूं आदरणीय, रचना पर आपकी विहंगम दृष्टि से
      रचना गतिमान हुई ।
      मन प्रसन्न हुआ।
      सादर।

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका गगन जी ।
      लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  8. बेहद खूबसूरत सृजन सखी 👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साहवर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  9. इन चौपाइयों में ऐसा लग रहा कि सारी प्रकृति को समेट लिया है ।
    २रजनी आई धीरे धीरे

    इंदु निशा का दामन चीरे

    नभ पर सुंदर तारक दल है

    निहारिका झरती पल पल है।।

    बहुत सुंदर लिखा है ।

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    1. आपकी विस्तृत, विशिष्ट टिप्पणी सदा मन उत्साह से भर देती है,।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर सस्नेह।

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  10. क्या बात है .. सबसे पहले इस पावन क्षण को झोली में भर लिया फिर लुभावने दृश्यों में विचरण करते हुए मानव सत्य से सहमत भी हो लिया । अनूठा सृजन हेतु हार्दिक बधाई ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अमृता जी मेरे लेखन को सराहने के लिए।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ,और मेरा उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर सस्नेह।

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  11. अत्यंत सुंदर कुसुम जी...नवल मुकुल पादप पर झूमे

    फूल फूल पर मधुकर घूमे।

    कोयल बोल रही उपवन में

    हरियाली छाई वन वन में ।।...एक औश्र बात क‍ि मैंने आपकी कुछ हाइकू रचनायें अपनी साइट के ल‍िए ली थीं...कृपया देखें और ब‍िना पूछे लेने के ल‍िए क्षमा करें..ये रहा उसका ल‍िंंक....सौ साल पुरानी काव्य शैली ताँका, ज‍िसने हाइकू को जन्म द‍िया
    http://legendnews.in/tanka-the-centennial-poetic-style-which-gave-birth-to-haiku/

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  12. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी ये मेरे लिए प्रसन्नता का क्षण है।
    क्षमा की कोई बात नहीं आपने यथोचित सम्मान से रचना मेरे ही नाम से प्रकाशित की है।
    मैं सच अभिभूत हूं।
    सादर सस्नेह।

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  13. वाह! बहुत सुंदर दी सराहना से परे।
    सादर

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  14. बहुत खूबसूरत छंद ... चौपाई को बाखूबी लिखा है ...
    बहुत बधाई हो ...

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