तीन क्षणिकाएं
मन
मन क्या है एक द्वंद का भँवर है
मंथन अनंत बार एक से विचार है
भँवर उसी पानी को अथक घुमाता है
मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।
अंहकार
अंहकार क्या है एक मादक नशा है
बार बार सेवन को उकसाता रहता है
मादकता बार बार सर चढ बोलती है
अंहकार सर पे ताल ठोकता रहता है।
क्रोध
क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
आग विनाश का प्रति रुप जब धरती है
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बेहतरीन क्षणिकाएँ!
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका, आपकी सक्रिय टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सादर।
ज्ञानवाणी
ReplyDeleteसुंदर।
नई रचना
जी सादर आभार आपका रोहतास जी।
Deleteनई रचना शानदार है।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत सुंदर रचना। शिवरात्रि की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपको भी अनंत शुभकामनाएं ज्योति बहन।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
वाह!बहुत सुंदर क्षणिकाएँ दी एक से बढ़के एक।
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार आपका बहना।
Deleteरचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
तीनों मुक्तक गंभीर मंथन को कह रहे ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
बहुत बहुत आभार आपका आपकी विहंगम दृष्टि ने रचना को नव उर्जा से भर दिया।
Deleteसादर सस्नेह।
वाह ! क्या बात है !
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव 🙏 भोलेबाबा की कृपादृष्टि आपपर सदा बनी रहे।🙏 महाशिवरात्रि पर्व की आपको परिवार सहित शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमहाशिवरात्रि पर्व की आपको भी अनंत शुभकामनाएं।
आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिली।
सादर आभार।
तीनों क्षणिकायें लाजवाब हैं, परंतु ये तो बेमिसाल है..
ReplyDeleteक्रोध
क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
आग विनाश का प्रति रुप जब धरती है
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।..सुंदर सृजन..
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी सुंदर!रचना को समर्थन देते भाव आपके ।
Deleteसस्नेह।
बेहतरीन क्षणिकाएँ!
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएं 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत खूब, तीनों मुक्तक लाजवाब, सादर नमन
ReplyDeleteमन अहंकार क्रोध ...
ReplyDeleteक्षणिक होते हुवे भी गहरा अर्थ ... दूर की बात .... लम्बी सोच नज़र आ यही है ...
बहुत बधाई आपको ...