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Wednesday, 10 March 2021

क्षणिकाएं


 तीन क्षणिकाएं


मन

मन क्या है एक द्वंद का भँवर है

मंथन अनंत बार एक से विचार है

भँवर उसी पानी को अथक घुमाता है

मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।


अंहकार 

अंहकार क्या है एक मादक नशा है

बार बार सेवन को उकसाता रहता है

 मादकता बार बार सर चढ बोलती है

अंहकार सर पे ताल ठोकता रहता है।


क्रोध 

क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है

आग विनाश का प्रति रुप जब धरती है

जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है

क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।


                कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

25 comments:

  1. बेहतरीन क्षणिकाएँ!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, आपकी सक्रिय टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

      Delete
  3. ज्ञानवाणी
    सुंदर।
    नई रचना

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    Replies
    1. जी सादर आभार आपका रोहतास जी।
      नई रचना शानदार है।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  5. बहुत सुंदर रचना। शिवरात्रि की शुभकामनाएं।

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    1. आपको भी अनंत शुभकामनाएं ज्योति बहन।
      बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  6. वाह!बहुत सुंदर क्षणिकाएँ दी एक से बढ़के एक।
    सादर

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    1. सस्नेह आभार आपका बहना।
      रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  7. तीनों मुक्तक गंभीर मंथन को कह रहे ।
    बहुत बढ़िया

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी विहंगम दृष्टि ने रचना को नव उर्जा से भर दिया।
      सादर सस्नेह।

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  8. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
      सादर।

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  9. बहुत सुंदर भाव 🙏 भोलेबाबा की कृपादृष्टि आपपर सदा बनी रहे।🙏 महाशिवरात्रि पर्व की आपको परिवार सहित शुभकामनाएं

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      महाशिवरात्रि पर्व की आपको भी अनंत शुभकामनाएं।
      आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिली।
      सादर आभार।

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  10. तीनों क्षणिकायें लाजवाब हैं, परंतु ये तो बेमिसाल है..
    क्रोध

    क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है

    आग विनाश का प्रति रुप जब धरती है

    जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है

    क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।..सुंदर सृजन..

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी सुंदर!रचना को समर्थन देते भाव आपके ।
      सस्नेह।

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  11. बेहतरीन क्षणिकाएँ!

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  12. बहुत सुंदर क्षणिकाएं 👌👌👌👌👌

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  13. बहुत खूब, तीनों मुक्तक लाजवाब, सादर नमन

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  14. मन अहंकार क्रोध ...
    क्षणिक होते हुवे भी गहरा अर्थ ... दूर की बात .... लम्बी सोच नज़र आ यही है ...
    बहुत बधाई आपको ...

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