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Tuesday, 1 October 2019

वेदना के स्वर

शाख से झर रहा हूं
मैं पीला पत्ता ,
तेरे मन से उतर गया हूं
मैं पीला पत्ता
ना तुम्हें ना बहारों को
कुछ भी अंतर पड़ेगा
सूख कर मुरझाया सा
मैं पीला पत्ता ,
छोड ही दोगे ना तुम मुझे
आज कल में
लो मैं ही छोड तुम्हें चला
मैं पीला पत्ता
संग हवाओं  के बह चला
मैं पीला पत्ता
अब रखा ही क्या है मेरे लिये
न आगे की नियति का पता
ना किसी गंतव्य का
मैं पीला पत्ता।।

कुसुम कोठारी ।





4 comments:

  1. छूटना छूटवाना एक तरफ से तो होता ही नहीं।
    सुंदर भावाभिव्यक्ति।

    पधारे शून्य पार 

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  2. नश्वरता और बिछोह पर बहुत हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति कुसुम जी ।

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  3. छोड ही दोगे ना तुम मुझे
    आज कल में
    लो मैं ही छोड तुम्हें चला
    मैं पीला पत्ता..यह जीवन ऐसा ही है सखी। बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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  4. छोड ही दोगे ना तुम मुझे
    आज कल में
    लो मैं ही छोड तुम्हें चला
    मैं पीला पत्ता..यह जीवन ऐसा ही है सखी। बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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