मेघों का काम है वर्षा के रूप में जल का वरदान बन बरसाना , प्रकृति निश्चित करती है कब, कितना, कंहा।
फिर ऐसा समय आता है पानी से मुक्त बादल नीले आसमान पर यूं ड़ोलते हैं ,निज कर्त्तव्य भार से उन्मुक्त हो वलक्ष रेशमी रूई जैसे....
व्योम पर बिखरे दल श्वेत सारंग
हो उन्मुक्त निज कर्त्तव्य भार से,
चांदनी संग क्रीड़ा करते दौड़ते
निर्बाध गति पवन संग हिलोर से।
धवल ,निर्मल , निर्दोष मेघमाला
चांद निहारता बैठ निज गवाक्ष से,
अहो मणिकांत माधुरी सी बह रही।
लो सोम-सुधा पुलक उठी स्पर्श से
मंदाकिनी रंग मिल बने वर्ण अमल
घन ओढ़नी पर तारक दल हिर कण से,
आज चंद्रिका दरिद्रा मांगे रेशम वलक्ष
नील नभ झांकता कोरी घूंघट ओट से ।
ऋतु का संदेशा लेकर चला हरकारा
शुक्ल अश्व सवार हो, मरुत वेग से,
मुकुर सा ,"नभ - गंगा" सुधा सलिल
पयोद निहारता निज आनन दर्प से ।
कुसुम कोठारी।
फिर ऐसा समय आता है पानी से मुक्त बादल नीले आसमान पर यूं ड़ोलते हैं ,निज कर्त्तव्य भार से उन्मुक्त हो वलक्ष रेशमी रूई जैसे....
व्योम पर बिखरे दल श्वेत सारंग
हो उन्मुक्त निज कर्त्तव्य भार से,
चांदनी संग क्रीड़ा करते दौड़ते
निर्बाध गति पवन संग हिलोर से।
धवल ,निर्मल , निर्दोष मेघमाला
चांद निहारता बैठ निज गवाक्ष से,
अहो मणिकांत माधुरी सी बह रही।
लो सोम-सुधा पुलक उठी स्पर्श से
मंदाकिनी रंग मिल बने वर्ण अमल
घन ओढ़नी पर तारक दल हिर कण से,
आज चंद्रिका दरिद्रा मांगे रेशम वलक्ष
नील नभ झांकता कोरी घूंघट ओट से ।
ऋतु का संदेशा लेकर चला हरकारा
शुक्ल अश्व सवार हो, मरुत वेग से,
मुकुर सा ,"नभ - गंगा" सुधा सलिल
पयोद निहारता निज आनन दर्प से ।
कुसुम कोठारी।
प्रकृति का अत्यंत सुन्दर वर्णन करती मनोरम रचना ।
ReplyDeleteबहुत सा आभार आपका मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से मन को खुशी मिली ।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध करती रचना ,ऐसे लगा जैसे आप कलम हाथ में लिए प्रकृति संग खेल रही हैं ,सादर
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी से मुझे जो सुकून मिला वो मैं दिखा तो नहीं सकती कामिनी जी पर सच कहूं तो जैसे रचना ने अपना मान पा लिया, मैं स्वयं भी ये लिखकर बहुत मुग्ध थी,और आपके शब्दों ने मुझे आनंदित कर दिया ।
Deleteढेर ढेर सा स्नेह।
वाह!दी नि:शब्द हूँ प्रकृति के इस पावन सृजन पर,सृष्टि में घटित होने वाली घटनाओं को आपने अपने दृष्टिकोण से शृंगार की पंखुड़ियों से भी सजा दिया है | बहुत सुंदर भाव और शब्द-विन्यास दी |रचना ने मन मोह लिया
ReplyDeleteआपके लेखन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है
सादर स्नेह
मन प्रसन्न हो गया बहना आपकी मनोरम प्रतिक्रिया से ,
Deleteरचना के भाव और काव्य दोनों पक्षों पर आपकी विहंगम दृष्टि से सृजन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
जी सादर आभार मेरी रचना को चर्चा मंच पर लेजाने हेतु।
ReplyDeleteसादर।