जलते दीप को देख,
दूर एक दीपक बोला
क्यों जलते औरों की खातिर
खुद तल में तेरे है अंधेरा ,
दीपक बोला गर नीचे ही देख लेता
तो वहाँ नही अंधेरा होता ,
बस मैं हूं केवल कलेवर
मैं कहां कब जला,
जले तो मिल तेल,बाती
और भ्रमित संसार ये बोले
देखो दीप जला,
सच-मुच जग को
गर करना रौशन ,
तो ऐ ! मानव सुन
देह दीप में सन्मति का तेल
और ज्ञान की बाती से
बस ज्योति जला
बस एक ज्योति जला ।
कुसुम कोठारी ।
दूर एक दीपक बोला
क्यों जलते औरों की खातिर
खुद तल में तेरे है अंधेरा ,
दीपक बोला गर नीचे ही देख लेता
तो वहाँ नही अंधेरा होता ,
बस मैं हूं केवल कलेवर
मैं कहां कब जला,
जले तो मिल तेल,बाती
और भ्रमित संसार ये बोले
देखो दीप जला,
सच-मुच जग को
गर करना रौशन ,
तो ऐ ! मानव सुन
देह दीप में सन्मति का तेल
और ज्ञान की बाती से
बस ज्योति जला
बस एक ज्योति जला ।
कुसुम कोठारी ।
देह दीप में सन्मति का तेल
ReplyDeleteऔर ज्ञान की बाती से
बस ज्योति जला
बस एक ज्योति जला ।
अतिसुन्दर भाव और सृजन
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 23 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रेरणा देती रचना 👍
ReplyDeleteदीपक बोला गर नीचे ही देख लेता
ReplyDeleteतो वहाँ नही अंधेरा होता
वाह ! क्या बात कही है कुसुम जी।
बहुत सुंदर और बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर सीख देती रचना , सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सीख देती रचना । उम्दा अभिव्यक्ति कुसुम जी । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं💐
ReplyDelete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७ -१०-२०१९ ) को "रौशन हो परिवेश" ( चर्चा अंक - ३५०१ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
ReplyDeleteकृपया शनिवार को रविवार पढ़े |
ज्ञान की रौशनी का प्रकाश कभी दूर तक जाता है ... ये तेल कभी ख़त्म नहीं होता ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना भाव पूर्ण ....
मैं कहां कब जला,
ReplyDeleteजले तो मिल तेल,बाती
और भ्रमित संसार ये बोले
देखो दीप जला, बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन | अगर संसार में कविकवी ना होते तो बहुत सी ज्ञान की बारों से लोगबाग वंचित ही रह जाते |कितना सुंदर सच उद्घाटित किया आपे रचना में | सचमुच जलती बती ही है तेल के साथ , हम कहते हैं दीपक जल रहा है | वाह !!! क्या बात कही आपने | बहुत बहुत शुभकामनायें इस रचना के लिए , आपके नाम | सस्नेह --
बेहतरीन रचना
ReplyDelete