पर दी ऐसे खिले पलाश का औचित्य ही क्या जिसमें सुगंध ( संवेदना और भावना ) न हो , फिर कैसे अरमानों की बगिया हरी होगी ?
बस यूं ही खिले-खिले रखना,हरी रहेगी अरमानों की बगियाप्रेम के हरे रहने तक।बहुत सुन्दर आशा की भावना सम्पन्न रचना ।
चाहतों के मेले हैंऔर उम्मीद पर संसार टिका है।प्रेम या तो सब्ज रहता है या होता ही नहीं।प्यारी रचना।
जी नमस्ते,आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक१४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी हैपांच लिंकों का आनंद पर...आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
सुंदर सृजन ,सादर नमन कुसुम जी
वाह! बेहतरीन रचना कुसुम जी! सादर।
जब खिलने लगे पलाशसंजो लेना आंखों मेंसजा रखना हृदय तल मेंफिर सूरज कभी ना डूबने देना.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी।
पर दी ऐसे खिले पलाश का औचित्य ही क्या जिसमें सुगंध ( संवेदना और भावना ) न हो , फिर कैसे अरमानों की बगिया हरी होगी ?
ReplyDeleteबस यूं ही खिले-खिले रखना,
ReplyDeleteहरी रहेगी अरमानों की बगिया
प्रेम के हरे रहने तक।
बहुत सुन्दर आशा की भावना सम्पन्न रचना ।
चाहतों के मेले हैं
ReplyDeleteऔर उम्मीद पर संसार टिका है।
प्रेम या तो सब्ज रहता है या होता ही नहीं।
प्यारी रचना।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
सुंदर सृजन ,सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteवाह! बेहतरीन रचना कुसुम जी! सादर।
ReplyDeleteजब खिलने लगे पलाश
ReplyDeleteसंजो लेना आंखों में
सजा रखना हृदय तल में
फिर सूरज कभी ना डूबने देना.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी।
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