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Saturday, 12 October 2019

प्रेम के हरे रहने तक

पलाश का मौसम अब आने को है,
जब खिलने लगे पलाश
संजो लेना आंखों में
सजा रखना हृदय तल में
फिर सूरज कभी ना डूबने देना
चाहतों के पलाश का
बस यूं ही खिले-खिले रखना,
हरी रहेगी अरमानों की बगिया
प्रेम के हरे रहने तक।

           कुसुम कोठारी ।

8 comments:

  1. पर दी ऐसे खिले पलाश का औचित्य ही क्या जिसमें सुगंध ( संवेदना और भावना ) न हो , फिर कैसे अरमानों की बगिया हरी होगी ?

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  2. बस यूं ही खिले-खिले रखना,
    हरी रहेगी अरमानों की बगिया
    प्रेम के हरे रहने तक।
    बहुत सुन्दर आशा की भावना सम्पन्न रचना ।

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  3. चाहतों के मेले हैं
    और उम्मीद पर संसार टिका है।
    प्रेम या तो सब्ज रहता है या होता ही नहीं।
    प्यारी रचना।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  5. सुंदर सृजन ,सादर नमन कुसुम जी

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  6. वाह! बेहतरीन रचना कुसुम जी! सादर।

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  7. जब खिलने लगे पलाश
    संजो लेना आंखों में
    सजा रखना हृदय तल में
    फिर सूरज कभी ना डूबने देना.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी।

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