मधुरागी
सुंदर सौरभ यूं
बिखरा मलय गिरी से,
उदित होने लगा
बाल पंतग इठलाके,
चल पड़ कर्तव्य पथ
का राही अनुरागी
प्रकृति सज उठी है
ले नये शृंगार मधुरागी
पुष्प सुरभित
दिशाएँ रंग भरी
क्षितिज व्याकुल
धरा अधीर
किरणों की रेशमी डोर
थामे पादप हंसे
पंछी विहंसे
विहंगम कमल दल
शोभित सर हृदी
भोर सुहानी आई
मन भाई।
कुसुम कोठारी ।
सुंदर सौरभ यूं
बिखरा मलय गिरी से,
उदित होने लगा
बाल पंतग इठलाके,
चल पड़ कर्तव्य पथ
का राही अनुरागी
प्रकृति सज उठी है
ले नये शृंगार मधुरागी
पुष्प सुरभित
दिशाएँ रंग भरी
क्षितिज व्याकुल
धरा अधीर
किरणों की रेशमी डोर
थामे पादप हंसे
पंछी विहंसे
विहंगम कमल दल
शोभित सर हृदी
भोर सुहानी आई
मन भाई।
कुसुम कोठारी ।
बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।
ReplyDeleteचल पड़ कर्तव्य पथ पर राही अनुरागी। बहुत सुंदर संकलन कुसुम जी।बेहतरीन
ReplyDeleteकिरणों की रेशमी डोर
ReplyDeleteथामे पादप हंसे
पंछी विहंसे
विहंगम कमल दल
शोभित सर हृदी
भोर सुहानी आई
बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन ! प्रकृति का विहंगम चित्र संजोती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
वाहहह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
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