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Monday, 7 October 2019

पुतला नहीं प्रवृति का दहन

 पुतला नही प्रवृति का दहन

मन का रावण
आज भी खड़ा है
सर तान कर
अंगद के पाँव जैसा,
सदियां बीत गई
रावण जलाते
पुतला भस्म होता रहा हर बार
रावण वहीं खड़ा रहा
अपने दंभ के साथ
सीना ताने
क्या जलाना है ?
पुतला या प्रवृति
बस लकीर पीट रहें हैं
बैठे बैठे हम
काश साल में
एकबार ही सही ,
मन की आसुरी
सोच बदलते
राम न बनते ,
रावण से नाता तोड़ते
तो  सचमुच दशहरा
सार्थक होता ।

                कुसुम कोठारी ।

15 comments:

  1. अपनी बुरी प्रवृत्ति का दहन करने में न जाने क्यों इतनी लज्जा आती है कि दूसरे का पुतला वह दहन कर ताली बजा रहा है।
    उद्देश्यपरक रचना,प्रणाम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका भाई।
      ये भी सही है कि यहां पुतले ही जलाएं जायेगें विचार नहीं ।

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  2. सही है ... हर साल रावण जलाते हैं पर वो हँसता है सब के ऊपर ... क्योंकि उसकी प्रिवृति नहीं जलती ... बहुत प्रभावी ... विजयदशमी की बहुत शुभकामनायें ...

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      रचनागत भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  3. बहुत ही सुंदर सीख देती रचना ,आप को भी विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. विजयादशमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
      बहुत सा आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 08 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका मुखरित मौन में रचना को शामिल करने के लिए। जरूर आना ही है ।
      सादर।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 9 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी बहुत बहुत आभार पम्मी जी पांच लिंक में शामिल होना सदैव मुझे हर्षित करता है।
      सस्नेह।

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  6. मन का रावण
    आज भी खड़ा है
    सर तान कर....
    बेहद ही प्रेरक इस रचना हेतु साधुवाद आदरणीया कुसुम जी। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह और सार्थकता मिली।
      सादर

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  7. मन का रावण
    आज भी खड़ा है
    सर तान कर
    अंगद के पाँव जैसा,
    सटीक चिन्तन भरी प्रेरक रचना ।

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  8. मन की सोंच बदले बिना पुतला दहन से सचमुच कुछ नहीं होने वाला है।

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  9. सुंदर सीख देती रचना
    शहर से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ..

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