आवाज शमा की
आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मेरी तो नियति ही जलना
तूं क्यों मुझसे लिपटता है ।
परवाना कहता आहें भर ,
तेरी नियति मेरी फितरत
जलना दोनो की ही किस्मत
तूं तो रहती जलती है
मै तुझ से पहले बुझ जाता हूं।
आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मैं तो जलती जग रौशन करने,
तूं क्या देता दुनिया को
बस नाहक जल जल मरता है !
तूं जलती जग के खातिर
जग तुझ को क्या देता है
बस खुद को खो देती हो तो
काला धब्बा रहता है ।
आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मेरे फना होते ही हवा
मेरे पंख ले जाती है
रहती ना मेरे जलने की कोई निशानी
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है ।
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है।
कुसुम कोठारी ।
आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मेरी तो नियति ही जलना
तूं क्यों मुझसे लिपटता है ।
परवाना कहता आहें भर ,
तेरी नियति मेरी फितरत
जलना दोनो की ही किस्मत
तूं तो रहती जलती है
मै तुझ से पहले बुझ जाता हूं।
आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मैं तो जलती जग रौशन करने,
तूं क्या देता दुनिया को
बस नाहक जल जल मरता है !
तूं जलती जग के खातिर
जग तुझ को क्या देता है
बस खुद को खो देती हो तो
काला धब्बा रहता है ।
आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मेरे फना होते ही हवा
मेरे पंख ले जाती है
रहती ना मेरे जलने की कोई निशानी
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है ।
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है।
कुसुम कोठारी ।
बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌
ReplyDeleteआवाज़ शमा की. ...
सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है।
Deleteअप्रतिम भाव लिए खूबसूरत सृजन कुसुम जी !!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी उत्साह वर्धन के लिये।
Deleteसस्नेह।
मेरी तो नियति ही जलना
ReplyDeleteतूं क्यों मुझसे लिपटता है ।
परवाना कहता आहें भर ,
तेरी नियति मेरी फितरत
जलना दोनो की ही किस्मत
तूं तो रहती जलती है
मै तुझ से पहले बुझ जाता हूं।
बेहद खूबसूरत रचना सखी
मन मोहक प्रतिक्रिया के लिये बहुत सा आभार सखी ।
Deleteसस्नेह ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 30/11/2018 की बुलेटिन, " सूचना - ब्लॉग बुलेटिन पर अवलोकन 2018 “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteपरवाने की दीवानगी न हो तो शमा की रौशनी पर कौन ध्यान देता है?
ReplyDeleteमजनूँ का जूनून न हो तो लैला के हुस्न को कौन जान पाता है?
आशिक़-ए-सादिक़ यानी इश्क़ की राह में फ़ना हो जाने वाले सीधे ख़ुदा तक पहुँच जाते हैं.
वाह बहुत सुन्दर प्रतिपंक्तियां आदरणीय, बहुत खूब लिखा आपने ।
Deleteआपकी उपस्थिति सदा उत्साह बढाती है।
सादर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी अवश्य ।सस्नेह।
Deleteमैं तो जलती जग रौशन करने,
ReplyDeleteतूं क्या देता दुनिया को
बस नाहक जल जल मरता है !
तूं जलती जग के खातिर
जग तुझ को क्या देता है
बस खुद को खो देती हो तो
काला धब्बा रहता है ।
शमा और परवाना!!!!
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर ,लाजवाब प्रस्तुति...
सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा सदा उत्साह बढाती रहें ।
Deleteसस्नेह आभार।
ReplyDeleteमेरे फना होते ही हवा
मेरे पंख ले जाती है
रहती ना मेरे जलने की कोई निशानी
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है ।बेहद भावपूर्ण और तर्कपूर्ण भी
आपकी सराहना से रचना को सार्थकता मिली शशि भाई ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह वर्धक है।
Deleteसस्नेह।
वाह!!लाजवाब !!
ReplyDeleteशुभा बहन बहुत बहुत आभार ।
Deleteसस्नेह।