Followers

Thursday, 29 November 2018

आवाज शमा की

आवाज शमा की

आवाज दी शमा ने ओ परवाने
            तूं क्यों नाहक जलता है।

           मेरी तो नियति ही जलना
           तूं क्यों मुझसे लिपटता है  ।
           परवाना कहता आहें भर ,
           तेरी नियति मेरी फितरत
         जलना दोनो की ही किस्मत
             तूं  तो  रहती जलती है
         मै तुझ से पहले बुझ जाता हूं।
 
       आवाज दी शमा ने ओ परवाने
            तूं क्यों नाहक जलता है।
     
   मैं तो जलती जग रौशन करने,
         तूं क्या देता दुनिया को
   बस नाहक जल जल मरता है !
      तूं जलती जग के खातिर
      जग तुझ को क्या  देता है
    बस खुद  को खो देती हो तो
          काला धब्बा रहता है ।
 
   आवाज दी शमा ने ओ परवाने
          तूं क्यों नाहक जलता है।

             मेरे फना होते ही हवा
              मेरे पंख ले जाती है
       रहती ना मेरे जलने की कोई निशानी
          बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है ।
          बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है।

                  कुसुम कोठारी ।

18 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌
    आवाज़ शमा की. ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है।

      Delete
  2. अप्रतिम भाव लिए खूबसूरत सृजन कुसुम जी !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार मीना जी उत्साह वर्धन के लिये।
      सस्नेह।

      Delete
  3. मेरी तो नियति ही जलना
    तूं क्यों मुझसे लिपटता है ।
    परवाना कहता आहें भर ,
    तेरी नियति मेरी फितरत
    जलना दोनो की ही किस्मत
    तूं तो रहती जलती है
    मै तुझ से पहले बुझ जाता हूं।
    बेहद खूबसूरत रचना सखी

    ReplyDelete
    Replies
    1. मन मोहक प्रतिक्रिया के लिये बहुत सा आभार सखी ।
      सस्नेह ।

      Delete
  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 30/11/2018 की बुलेटिन, " सूचना - ब्लॉग बुलेटिन पर अवलोकन 2018 “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  5. परवाने की दीवानगी न हो तो शमा की रौशनी पर कौन ध्यान देता है?
    मजनूँ का जूनून न हो तो लैला के हुस्न को कौन जान पाता है?
    आशिक़-ए-सादिक़ यानी इश्क़ की राह में फ़ना हो जाने वाले सीधे ख़ुदा तक पहुँच जाते हैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह बहुत सुन्दर प्रतिपंक्तियां आदरणीय, बहुत खूब लिखा आपने ।
      आपकी उपस्थिति सदा उत्साह बढाती है।
      सादर।

      Delete
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  7. मैं तो जलती जग रौशन करने,
    तूं क्या देता दुनिया को
    बस नाहक जल जल मरता है !
    तूं जलती जग के खातिर
    जग तुझ को क्या देता है
    बस खुद को खो देती हो तो
    काला धब्बा रहता है ।
    शमा और परवाना!!!!
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर ,लाजवाब प्रस्तुति...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा सदा उत्साह बढाती रहें ।
      सस्नेह आभार।

      Delete

  8. मेरे फना होते ही हवा
    मेरे पंख ले जाती है
    रहती ना मेरे जलने की कोई निशानी
    बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है ।बेहद भावपूर्ण और तर्कपूर्ण भी

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सराहना से रचना को सार्थकता मिली शशि भाई ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह वर्धक है।
      सस्नेह।

      Delete
  9. वाह!!लाजवाब !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभा बहन बहुत बहुत आभार ।
      सस्नेह।

      Delete