गुमगश्ता रुमानियत
फूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
पत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।
रुमानियत की बातें न कर ए जमाने
अज़ाब ए गिर्दाब में गुमगश्ता है जिंदगी भी।
संगदिलों से कैसी परस्ती ए दिल
वफा न मिलेगी जख्म ए ज़बीं पा के भी।
चाँद तारों की तमन्ना करने वाले सुन
जल्वा ए माहताब को चाहिये फलक भी।
"शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
कुसुम कोठारी।
(अज़ाब =दर्द, गिर्दाब =भंवर, ज़बीं =माथा, सर)
फूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
पत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।
रुमानियत की बातें न कर ए जमाने
अज़ाब ए गिर्दाब में गुमगश्ता है जिंदगी भी।
संगदिलों से कैसी परस्ती ए दिल
वफा न मिलेगी जख्म ए ज़बीं पा के भी।
चाँद तारों की तमन्ना करने वाले सुन
जल्वा ए माहताब को चाहिये फलक भी।
"शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
क्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
कुसुम कोठारी।
(अज़ाब =दर्द, गिर्दाब =भंवर, ज़बीं =माथा, सर)
Beautiful 👌 👌 👌 👌
ReplyDeleteबहुत सा आभार सुधा जी ।
Deleteशीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
ReplyDeleteक्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
बेहतरीन रचना सखी
सखी आभार सस्नेह आपका।
Deleteबेहतरीन रचना सखी 👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/11/2018 की बुलेटिन, " सब से तेज़ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअशेष आभार मेरी रचना को चुनने के लिये।
Deleteसादर।
तूफानों में उतरने से डरता है दरिया में
ReplyDeleteडूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
बहुत खूब...., लाजवाब ग़ज़ल !!
मीना जी आपके स्नेह से अभिभूत हुई।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteबहुत ख़ूब कुसुम जी.
ReplyDeleteआपने तो इतना डरा दिया है कि हम तो डूबने के डर से मजधार और साहिल ही क्या, समुन्दर, नदी, झील या तालाब की तरफ़ झांकेंगे भी नहीं. और रही दिल टूटने की बात तो दिल कभी किसी से लगाएंगे ही नहीं.
सादर आभार आदरणीय,
Deleteबोझिल वातावरण को खुशनुमा बनाना कोई आपसे सीखे सर ।
बस यूं ही सभी को स्नेह बांटते रहे।
पुनः आभार ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २६ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार ।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deletenice
ReplyDeleteब्लॉग पर स्वागत आपका दीपशिखा जी,
Deleteस्नेह उपस्थिति का आभार।
"शीशा हो या दिल आखिर टूटता" जरुर
ReplyDeleteक्यों लगाता है जमाना फिर फिर दिल भी ।
बहुत सुन्दर.... भावप्रवण रचना...
सुधा जी आपकी सदा उत्साह बढाती प्रतिक्रिया का स्नेह आभार ।
Deleteफूल दिया किये उनको खिजाओं में भी
ReplyDeleteपत्थर दिल निकले फूल ले कर भी ।!!
बहुत खूब कुसुम बहन |
खिंजा में फूल लेकर भी वे अपने ना हुए --
बहारों की उन्हें कद्र क्या होगी ?
रोमानियत का ये रंग अपनी मिसाल आप है | सभी शेर बहुत उम्दा और अर्थपूर्ण | सस्नेह बधाई बहना |
रेनू बहन सस्नेह आभार, आपके मनभावन उद्गगारों से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसदा आपका समर्थन मुझे और अच्छा लिखने को प्रोत्साहित करता है।
सस्नेह।
डूबती है कई कश्तियां साहिल पर भी।
ReplyDeleteकुसुम जी बहुत खूब.. लाजवाब ग़ज़ल !!
बहुत बहुत आभार आपका उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ,ब्लॉग पर स्वागत है आपका ।
Deleteसादर।