मन अतिथि
कुहूक गाये कोयलिया
सुमन खिले चहुँ ओर
पपीहा मीठी राग सुनाये
नाच उठे मन मोर ।
मन हुवा मकरंद आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।
द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तोल।
मन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।
कुसुम कोठारी ।
कुहूक गाये कोयलिया
सुमन खिले चहुँ ओर
पपीहा मीठी राग सुनाये
नाच उठे मन मोर ।
मन हुवा मकरंद आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।
द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तोल।
मन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।
कुसुम कोठारी ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/11/2018 की बुलेटिन, " पंजाब केसरी को समर्पित १७ नवम्बर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteमेरी रचना को चुनने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
वाह !जब मन पर किसी और का कब्जा हो तो अपने ही घर में अतिथि होना पड़ता है....सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमीना जी आपको ब्लॉग पर देख बहुत हर्ष हुवा ।
Deleteआपकी सार्थक प्रतिक्रिया मिली रचना सार्थक हुई,
सदा स्नेहबनाये रखें
अपने घर हुआ मन अतिथि....
ReplyDeleteसर्वथा नई परिकल्पना मोहित कर गई । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय कुसुम जी।
जी सादर आभार आपका, मोहक प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteबहुत खूब..जी मनमोहक रचना !
ReplyDelete'नाच' को 'नाँच'
'और' को 'ओर'
'उडता' को 'उड़ता' करिए
जी बहुत सा आभार आपका त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने के लिये सदा सहयोग बनायें रखें।
Deleteनाचँ मुझे नही समझ आया, नाच ही उचित लगा सधन्वाद सादर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी सस्नेह आभार मै उपस्थित रहूंगी।
Deleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय सखी ।
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteजी सादर आभार, ब्लॉग पर आपका सहृदय स्वागत है।
Deleteअति सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत लाजवाब....
ReplyDeleteमन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।
वाह!!!
बहुत सा स्नेह आभार सुधा जी ।
Deleteआज के डिजिटल-युग में ऐसी सुन्दर, सरल और सहज कविता? कुसुम जी आप हमको महादेवी वर्मा के युग में वापस क्यों ले जाना चाहती हैं? ये मोर, ये पपीहा, ये मकरंद अब कहाँ हैं? अब तो कविताओं में या तो राजनीतिक उठा-पटक है या घिसे-पिटे चुट्कुलें हैं. इतनी अच्छी कविताएँ लिख कर हमारी आदत ख़राब मत कीजिए.
ReplyDeleteसर आपकी प्रशंसा सर आंखों पर माना अतिशयोक्ति है पर मनभावन है, प्रथम तो आप को ब्लॉग पर देख मैं अभिभूत हू, दूसरी इतनी सांगोपांग सराहना और आशीष के लिये शुक्रगुज़ार, महादेवी जी के पांव की धूल का एक कण भी बन पाऊं तो उस से बड़ी उपलब्धि मेरे लिये कुछ नही,
ReplyDeleteसर आते रहियेगा ब्लॉग पर आशीर्वाद देने ।
सादर ।