Saturday, 17 November 2018

मन अतिथि

मन  अतिथि

कुहूक गाये कोयलिया
सुमन खिले चहुँ ओर
पपीहा मीठी राग सुनाये
नाच उठे मन मोर  ।

मन हुवा मकरंद आज
हवा सौरभ ले गई चोर
नव अंकुर लगे चटकने
धरा का खिला हर पोर।

द्वारे आया कौन अतिथि
मन में हर्ष हिलोल
ऐसे बांध ले गया मन
स्नेह बाटों में तोल।

मन बावरा उड़ता
पहुंचा उसकी ठौर
अपने घर भई अतिथि
बैठ नयनन की कोर।

     कुसुम कोठारी ।

19 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/11/2018 की बुलेटिन, " पंजाब केसरी को समर्पित १७ नवम्बर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सादर आभार आदरणीय।
      मेरी रचना को चुनने के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  2. वाह !जब मन पर किसी और का कब्जा हो तो अपने ही घर में अतिथि होना पड़ता है....सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. मीना जी आपको ब्लॉग पर देख बहुत हर्ष हुवा ।
      आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मिली रचना सार्थक हुई,
      सदा स्नेहबनाये रखें

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  3. अपने घर हुआ मन अतिथि....
    सर्वथा नई परिकल्पना मोहित कर गई । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय कुसुम जी।

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    1. जी सादर आभार आपका, मोहक प्रतिक्रिया आपकी।

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  4. बहुत खूब..जी मनमोहक रचना !
    'नाच' को 'नाँच'
    'और' को 'ओर'
    'उडता' को 'उड़ता' करिए

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    1. जी बहुत सा आभार आपका त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने के लिये सदा सहयोग बनायें रखें।
      नाचँ मुझे नही समझ आया, नाच ही उचित लगा सधन्वाद सादर।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी सस्नेह आभार मै उपस्थित रहूंगी।

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  6. बेहतरीन रचना सखी

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    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी ।

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    1. जी सादर आभार, ब्लॉग पर आपका सहृदय स्वागत है।

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  8. अति सुन्दर सृजन

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  9. बहुत लाजवाब....
    मन बावरा उड़ता
    पहुंचा उसकी ठौर
    अपने घर भई अतिथि
    बैठ नयनन की कोर।
    वाह!!!

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    1. बहुत सा स्नेह आभार सुधा जी ।

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  10. आज के डिजिटल-युग में ऐसी सुन्दर, सरल और सहज कविता? कुसुम जी आप हमको महादेवी वर्मा के युग में वापस क्यों ले जाना चाहती हैं? ये मोर, ये पपीहा, ये मकरंद अब कहाँ हैं? अब तो कविताओं में या तो राजनीतिक उठा-पटक है या घिसे-पिटे चुट्कुलें हैं. इतनी अच्छी कविताएँ लिख कर हमारी आदत ख़राब मत कीजिए.

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  11. सर आपकी प्रशंसा सर आंखों पर माना अतिशयोक्ति है पर मनभावन है, प्रथम तो आप को ब्लॉग पर देख मैं अभिभूत हू, दूसरी इतनी सांगोपांग सराहना और आशीष के लिये शुक्रगुज़ार, महादेवी जी के पांव की धूल का एक कण भी बन पाऊं तो उस से बड़ी उपलब्धि मेरे लिये कुछ नही,
    सर आते रहियेगा ब्लॉग पर आशीर्वाद देने ।
    सादर ।

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