मन की गति विरला ही जाने
एकाकीपन अवलंबन ढूंढता
और एकांत में वास शांति का
जो जो एकांत में है उतरता
उद्विग्नता पर विजय है पाता ।
बिना सहारा लिये किसी के
वो महावीर, गौतम बन जाता
जगत नेह का स्वरुप है छलना
पाने की चाहत में और उलझना।
प्रिय के नेह को मन अकुलाता
मिलते ही वहीं उलझा जाता
और उसी में बस सुख पाता
ना मिले तो रोता भरमाता।
मन का बोध अति मुश्किल
विकल, विरल ओ विचलित
अदम्य प्यास जो आज होती
कल वितृष्णा बन है खोती ।
मन की गति विरला ही जाने ।
कुसुम कोठारी ।
एकाकीपन अवलंबन ढूंढता
और एकांत में वास शांति का
जो जो एकांत में है उतरता
उद्विग्नता पर विजय है पाता ।
बिना सहारा लिये किसी के
वो महावीर, गौतम बन जाता
जगत नेह का स्वरुप है छलना
पाने की चाहत में और उलझना।
प्रिय के नेह को मन अकुलाता
मिलते ही वहीं उलझा जाता
और उसी में बस सुख पाता
ना मिले तो रोता भरमाता।
मन का बोध अति मुश्किल
विकल, विरल ओ विचलित
अदम्य प्यास जो आज होती
कल वितृष्णा बन है खोती ।
मन की गति विरला ही जाने ।
कुसुम कोठारी ।
प्रिय के नेह को मन अकुलाता
ReplyDeleteमिलते ही वहीं उलझा जाता
और उसी में बस सुख पाता
ना मिले तो रोता भरमाता। बहुत सही कहा आपने बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी
आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से मन को खुशी और उत्साह मिलता है।
Deleteसदा स्वागत है।
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना आदरणीया
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अभिलाषा बहन।
Deleteमन का बोध अति मुश्किल
ReplyDeleteविकल, विरल ओ विचलित
अदम्य प्यास जो आज होती
कल वितृष्णा बन है खोती ।
क्या बात हैं।
ग़ज़ब
सादर आभार आदरणीय,
Deleteसक्रिय विस्तृत प्रतिक्रिया के लिये ।
बहुत ही उम्दा...बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार सखी आपके आने से रचना संवर जाती है
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/11/94.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार मै अवश्य आऊंगी।
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