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चाँदनी का श्रृंगार
निर्मेघ नभ पर चाँद,
विभा सुधा बरसा रहा
तारों के दीपों से नीलम
व्योम झिलमिला रहा।
निर्मल कौमुदी छटा से
विश्व ज्यों नहा रहा
पुष्प- पुष्प पर मंजुल
वासंती मद तोल रहा।
सरित, सलिल मुकुल,
मधुर स्वर बोल रहा
कानों में जैसे सुमधुर
अमृत रस घोल रहा।
विधु का वैभव स्वतंत्र
वल्लरियों पर झूम रहा
चातकी पर मोहित हो
विटप का मुख चूम रहा।
कुसुम कोठारी।
कौमुदी=चांदनी, मुकुल =दर्पण, वल्लरी =लता
चाँदनी का श्रृंगार
निर्मेघ नभ पर चाँद,
विभा सुधा बरसा रहा
तारों के दीपों से नीलम
व्योम झिलमिला रहा।
निर्मल कौमुदी छटा से
विश्व ज्यों नहा रहा
पुष्प- पुष्प पर मंजुल
वासंती मद तोल रहा।
सरित, सलिल मुकुल,
मधुर स्वर बोल रहा
कानों में जैसे सुमधुर
अमृत रस घोल रहा।
विधु का वैभव स्वतंत्र
वल्लरियों पर झूम रहा
चातकी पर मोहित हो
विटप का मुख चूम रहा।
कुसुम कोठारी।
कौमुदी=चांदनी, मुकुल =दर्पण, वल्लरी =लता
बहुत ही सुन्दर वर्णन किया सखी आप ने चाँदनी का. ..👌
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह और आभार सखी।
Deleteवाह सखी बहुत ही बेहतरीन मन को छू गई आपकी रचना 👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteसदा उत्साह बढाती रहें।
अति उत्तम और मार्मिक शब्दों का चयन किया है आपने ने जिसने आपकी रचना सुमुधुर और निर्मल मनमोहक बना दिया
ReplyDeleteजी सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।
Deleteवाह !!! बहुत सुंदर
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/98.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी अवश्य ।
Deleteसादर ।
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...
आभार प्रिय सखी।
Deleteसस्नेह ।
सुन्दर कोमल शब्द-बिम्बों से सजी रचना !!! बधाई!!!!
ReplyDeleteजी सुंदर प्रबुद्ध प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन के लिये बहुत बहुत आभार।
Deleteसादर।