Tuesday, 27 November 2018

चाँदनी का श्रृंगार


      चाँदनी का श्रृंगार

      निर्मेघ नभ पर चाँद,
      विभा सुधा बरसा रहा
     तारों के  दीपों से नीलम
      व्योम झिलमिला रहा।

      निर्मल कौमुदी छटा से
        विश्व ज्यों नहा रहा
       पुष्प- पुष्प पर मंजुल
       वासंती मद तोल रहा।

      सरित, सलिल मुकुल,
       मधुर स्वर बोल रहा
      कानों में जैसे  सुमधुर
      अमृत रस घोल रहा।

    विधु का  वैभव  स्वतंत्र
     वल्लरियों पर झूम रहा
     चातकी पर मोहित हो
    विटप का मुख चूम रहा।

            कुसुम कोठारी।
कौमुदी=चांदनी,  मुकुल =दर्पण, वल्लरी =लता

14 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर वर्णन किया सखी आप ने चाँदनी का. ..👌
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. ढेर सा स्नेह और आभार सखी।

      Delete
  2. वाह सखी बहुत ही बेहतरीन मन को छू गई आपकी रचना 👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार सखी ।
      सदा उत्साह बढाती रहें।

      Delete
  3. अति उत्तम और मार्मिक शब्दों का चयन किया है आपने ने जिसने आपकी रचना सुमुधुर और निर्मल मनमोहक बना दिया

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।

      Delete
  4. वाह !!! बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/98.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर...
    लाजवाब प्रस्तुति...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार प्रिय सखी।
      सस्नेह ।

      Delete
  7. सुन्दर कोमल शब्द-बिम्बों से सजी रचना !!! बधाई!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सुंदर प्रबुद्ध प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन के लिये बहुत बहुत आभार।
      सादर।

      Delete