एक और महाभारत
गर्दिश-ए- दौराँ किसका है
कुछ समझ आया कुछ नहीं आया
वक्त थमा है उसी जगह
हम ही गुज़र रहे दरमियान
गज़ब खेल है समझ से बाहर
कौन किस को बना रहा है
कौन किसको बिगाड़ रहा है
चारा तो बेचारा आम जन है
जनता हर पल ठगी सी खड़ी है
महाभारत में जैसे द्युत-सभा बैठी है
भीष्म ,धृतराष्ट्र, द्रोण ,कौरव- पांडव
न जाने कौन किस किरदार में है
हाँ दाव पर द्रोपदी ही थी पहले की तरह
जो प्रंजातंत्र के वेश में लाचार सी खड़ी है,
जुआरी जीत-हार तक नये पासे फैंक रहे
आदर्शो का भरी सभा चीर-हरण हो रहा
केशव नही आये, हां केशव अब नही आयेंगे
अब महाभारत में "श्री गीता" अवतरित नहीं होगी
बस महाभारत होगा छल प्रपंचों का ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
यूँ तो मजबूत किया था
ReplyDeleteहाथ आम जन का
लेकिन लालच
हमेशा से लुटवाता रहा
देश की इज़्ज़त ।
खुद चारा बन
पेश होते रहे
हम आम जन ।
ऊपर से जातियों ने
बाँट दिए सबके मन ।
हुई थी पहले
धर्म के लिए
महाभारत
अबकी महाभारत में
धर्म होता ही नहीं ,
नेता करते हैं
प्रजा का चीर हरण
और प्रजा का चीर
कभी खत्म होता नहीं ।
आपकी ये बेहतरीन रचना मन को उद्वेलित कर गयी ।
रचना और प्रतिक्रिया दोनों बहुत खूब !
Deleteकिन्तु यथार्थ दुखद.
नूपुरं जी ,
Deleteप्रतिक्रिया को सराहने के लिए शुक्रिया ।
अहा!आपने तो प्रतिपंक्तियों में रचना के समर्थन में बहुत कुछ कह दिया।
Deleteइस शानदार पंक्तियों के लिए बधाई।
हृदय से आभार आपका आदरणीय संगीता जी।
रचना को आपका स्नेह मिला और बहुत मिला।
सस्नेह।
सस्नेह आभार नूपुर जी, यथार्थ तो सामने खड़ा मुंह चिढ़ा रहा है चाहे कितना भी दुखद क्यों न हो।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 18 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी हृदय से आभार आपका पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
Deleteमैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आलोक जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका भारती जी रचना को आपका स्नेह मिला।
Deleteसस्नेह।
ना जाने यह काल कब समाप्त होगा
ReplyDeleteसामयिक चिन्तन
सस्नेह आभार विभाग जी, बात तो चिंता जनक हैं पर हम सब लाचार हैं ।
Deleteसस्नेह।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच "कोहरे की अब दादागीरी" (चर्चा अंक-4314) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteमैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
वाह ! अथ श्री महागारत कथा ---
ReplyDeleteजी महागारत ही है ,पर महाभारत जैसी ...
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सादर।
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सखी उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन सखी
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सखी।
ReplyDeleteआपने रचना के भावों को समर्थन दिया सृजन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
हाँ दाव पर द्रोपदी ही थी पहले की तरह
ReplyDeleteजो प्रंजातंत्र के वेश में लाचार सी खड़ी है,
केशव नहीं आयेंगे क्योंकि केशव ने सिखा दिया था द्रोपदी को ऐसे अन्यायियों के खिलाफ आवाज उठाना और अबकी तो द्रोपदी पूरी प्रजातंत्र होकर भी चुप है फिर केशव भी करें तो क्या करें..
समसामयिक हालातों पर बहुत ही सटीक एवं चिन्तनपरक सृजन
लाजवाब।
हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी आपने सुंदर सटीक व्याख्या की कि केशव भी करें तो क्या करें।
Deleteद्रौपदी बनी जनता बस मूक ही खड़ी सर धुनती है ।
सस्नेह आभार आपका।
प्रजातन्त्र तो खैर अभी है नहीं... हाँ आज की राजनीति जरूर छल-प्रपंच पर ही टिकी हुई है।
ReplyDeleteजी सही कहा आपने प्रजातंत्र के नाम बस तानाशाही है।
Deleteसादर आभार आपका।
बहुत खूब।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
शायद इसे ही कलियुग कहते हैं
ReplyDeleteजी द्वापर के शेष काल में ही कलयुग के दर्शन होने लगे थे आते कलयुग की पदचाप ही महाभारत काल था ।
Deleteसस्नेह आभार।