Monday, 17 January 2022

गर्दिश-ए-दौराँ


 एक और महाभारत


गर्दिश-ए- दौराँ किसका है

कुछ समझ आया कुछ नहीं आया

वक्त थमा है उसी जगह

हम ही गुज़र रहे दरमियान

गज़ब खेल है समझ से बाहर

कौन किस को बना रहा है

कौन किसको बिगाड़ रहा है

चारा तो बेचारा आम जन है

जनता हर पल ठगी सी खड़ी है

महाभारत में जैसे द्युत-सभा बैठी  है

भीष्म ,धृतराष्ट्र, द्रोण ,कौरव- पांडव 

न जाने कौन किस किरदार में है

हाँ दाव पर द्रोपदी ही थी पहले की तरह

जो प्रंजातंत्र के वेश में लाचार सी खड़ी है,

जुआरी जीत-हार तक नये पासे फैंक रहे

आदर्शो का भरी सभा चीर-हरण हो रहा

केशव नही आये, हां केशव अब नही आयेंगे 

अब महाभारत में "श्री गीता" अवतरित नहीं होगी

बस महाभारत होगा छल प्रपंचों का ।

              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

29 comments:

  1. यूँ तो मजबूत किया था
    हाथ आम जन का
    लेकिन लालच
    हमेशा से लुटवाता रहा
    देश की इज़्ज़त ।
    खुद चारा बन
    पेश होते रहे
    हम आम जन ।
    ऊपर से जातियों ने
    बाँट दिए सबके मन ।
    हुई थी पहले
    धर्म के लिए
    महाभारत
    अबकी महाभारत में
    धर्म होता ही नहीं ,
    नेता करते हैं
    प्रजा का चीर हरण
    और प्रजा का चीर
    कभी खत्म होता नहीं ।

    आपकी ये बेहतरीन रचना मन को उद्वेलित कर गयी ।

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    1. रचना और प्रतिक्रिया दोनों बहुत खूब !
      किन्तु यथार्थ दुखद.

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    2. नूपुरं जी ,
      प्रतिक्रिया को सराहने के लिए शुक्रिया ।

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    3. अहा!आपने तो प्रतिपंक्तियों में रचना के समर्थन में बहुत कुछ कह दिया।
      इस शानदार पंक्तियों के लिए बधाई।
      हृदय से आभार आपका आदरणीय संगीता जी।
      रचना को आपका स्नेह मिला और बहुत मिला।
      सस्नेह।

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    4. सस्नेह आभार नूपुर जी, यथार्थ तो सामने खड़ा मुंह चिढ़ा रहा है चाहे कितना भी दुखद क्यों न हो।
      सस्नेह।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 18 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. जी हृदय से आभार आपका पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
      मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  3. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आलोक जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  4. बहुत सुंदर रचना

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    1. हृदय से आभार आपका भारती जी रचना को आपका स्नेह मिला।
      सस्नेह।

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  5. ना जाने यह काल कब समाप्त होगा
    सामयिक चिन्तन

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    1. सस्नेह आभार विभाग जी, बात तो चिंता जनक हैं पर हम सब लाचार हैं ।
      सस्नेह।

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  6. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच     "कोहरे की अब दादागीरी"  (चर्चा अंक-4314)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  7. वाह ! अथ श्री महागारत कथा ---

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    1. जी महागारत ही है ,पर महाभारत जैसी ...
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  8. बेहतरीन रचना।

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    1. हृदय से आभार आपका सखी उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  9. बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन सखी

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  10. हृदय से आभार आपका सखी।
    आपने रचना के भावों को समर्थन दिया सृजन सार्थक हुआ।
    सस्नेह।

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  11. हाँ दाव पर द्रोपदी ही थी पहले की तरह

    जो प्रंजातंत्र के वेश में लाचार सी खड़ी है,
    केशव नहीं आयेंगे क्योंकि केशव ने सिखा दिया था द्रोपदी को ऐसे अन्यायियों के खिलाफ आवाज उठाना और अबकी तो द्रोपदी पूरी प्रजातंत्र होकर भी चुप है फिर केशव भी करें तो क्या करें..
    समसामयिक हालातों पर बहुत ही सटीक एवं चिन्तनपरक सृजन
    लाजवाब।

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी आपने सुंदर सटीक व्याख्या की कि केशव भी करें तो क्या करें।
      द्रौपदी बनी जनता बस मूक ही खड़ी सर धुनती है ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  12. प्रजातन्त्र तो खैर अभी है नहीं... हाँ आज की राजनीति जरूर छल-प्रपंच पर ही टिकी हुई है।

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    1. जी सही कहा आपने प्रजातंत्र के नाम बस तानाशाही है।
      सादर आभार आपका।

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  13. Replies
    1. हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  14. शायद इसे ही कलियुग कहते हैं

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    1. जी द्वापर के शेष काल में ही कलयुग के दर्शन होने लगे थे आते कलयुग की पदचाप ही महाभारत काल था ।
      सस्नेह आभार।

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