हिन्दी दिवस मनाने की सार्थकता कितनी?
हम दीपक प्रज्वलित करते हैं, गोष्ठियों का आयोजन करते हैं, जगह-जगह कवि सम्मेलन होते हैं, हिन्दी दिवस की बधाईयाँ देते हैं, लेते हैं ।
हम एक दिन पुरे मातृभाषा के आँचल तले मृग मरीचिका से स्वयं को भ्रमित कर आत्मवंचना से बचने में लगे रहते हैं।
हिन्दी पखवारा और हिन्दी सप्ताह मनाने भर से हिन्दी का उद्धार हो जाना एक खुशफहमी के सिवा और क्या है, हिन्दी के प्रति प्रतिबद्धता हर समय कम से कम हर हिन्दी साहित्यकार और रचनाकारों को रखनी होगी।
अच्छे लिखने वालों के साथ अच्छे समालोचकों की बहुत आवश्यकता है आज हिन्दी लेखन में।
सबसे मुख्य बात है कि अब आज के समय में हिन्दी विषय को बस उत्तीर्ण होने जितनी ही अहमियत देते हैं तीनों वर्ग
1 अध्यापक 2 अभिभावक 3 स्वयं विद्यार्थी।
इसलिये विषय की नींव पर कोई ध्यान नही देता बस काम निपटाता है।
जहाँ तक व्यावहारिकता की बात है, वहाँ हम बस अपने तक सीमित रह जाते हैं, हर-दिन की आपा-धपी से लड़ने के लिए हम बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाना चाहते हैं, और ये आज की ज़रूरत ही बन गई है,
विश्व स्तर पर आगे बढ़ने की ललक , प्रतियोगिता के युग में लड़ कर आगे बढ़ने के ध्येय में मातृभाषा का मोह किसी विरले को लुभाता है, बाकी सब बस व्यावहारिक भविष्य को सँवारने का उद्देश्य लिए आगे बढ़ते हैं,उन्हें समय नहीं होता ये देखने का कि उनकी राष्ट्र भाषा उपेक्षिता सी कहाँ खड़ी है। भाषा के पुनरुत्थान के लिए साहित्यकारों और हिन्दी रचनाकारों को ही प्रयास करने होंगे, हम एक दिन हिन्दी दिवस मनाकर हिन्दी के प्रति कौनसी भक्ति दिखाते हैं मुझे नहीं मालूम हम व्यवहार में कितनी हिन्दी उतारते हैं चिंतन कर देखने का विषय है ।
आज अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी की स्थिति कितनी बुरी है, बच्चों को सामान्य से शब्दों का मतलब अंग्रेज़ी में बतलाना पड़ता है, यहाँ तक होता है कि आप को अपने कम अंग्रेजी ज्ञान के लिए लज्जा महसूस होती होगी पर उन्हें अपने न बराबर हिन्दी ज्ञान के लिए कोई ग्लानि नहीं होती ।
हम दायित्व बोध के साथ हिन्दी को नया आसमान देने के लिये सदा प्रतिबद्धता बनाएं ।
दुसरी भाषाओं को अपनाओं सम्मान दो पर अपनी भाषा को शिर्ष स्थान पर रखना हमारा प्रथम कर्तव्य हो ।
कैसे अपने ही घर परित्यक्ता है हिन्दी, क्यों दोयम दर्जा है हिन्दी को, कौन उत्तरदायी है इस के लिए, इस सोच को पीछे छोड़कर आगे के लिए इतना सोचें इतना करें कि हिन्दी अपना शिखर स्थान पा सके ।
हिन्दी हमारा अभिमान है ।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।🌷
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बिन हिंदी मैं मूक हूँ, टूटी जैसे बीन।
ReplyDeleteलाख जतन कर लो मगर, जल बिन तड़पे मीन ।।
आप ही के दोहे के माध्यम से हिंदी भाषा के प्रति अनुराग व्यक्त करते हुए यही कहूंगी कि हिंदी की उपेक्षा के लिए हम सभी उत्तरदायी हैं॥ हिन्दी भाषा के प्रति उदासीनता के सारगर्भित तथ्यों के साथ चिन्तनपरक लेख ।
हृदय से आभार आपका मीना जी सटीक बात कही आपने चाहे माध्यम कोई भी हो।
Deleteहिन्दी हमारा गर्व है मान है सम्मान है।
सुंदर प्रतिपंक्तियों से लेख का मान बढ़ाने के लिए सस्नेह आभार आपका।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहिंदी भाषा में छुपा, भाषा का विज्ञान।
Deleteदे सकती ये विश्व को, कंप्यूटर सा ज्ञान।।
कंप्यूटर सा ज्ञान, सहज सहगामी बनकर ।
हिंदी का विज्ञान, समझ आएगा छनकर ।।
कह जिज्ञासा आज, बड़ी हिंदी से आशा ।
सरस,सरल संवाद, सहेजें हिंदी भाषा ।।..
आपके विचारों से मैं शत प्रतिशत सहमत हूं, हमें हिंदी को सबकी भाषा बनाने के लिए खुद से, अपने घर से, अपने बच्चों से ही शुरुआत करनी पड़ेगी । सार्थक लेखन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
वाह! सुंदर कुण्डलियाँ आपकी ।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेख सार्थक हुआ जिज्ञासा जी।
सस्नेह आभार आपका।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (११-०१ -२०२२ ) को
'जात न पूछो लिखने वालों की'( चर्चा अंक -४३०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
रचना गौरांवित हुई।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर और सार्थक लेखन।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सखी।
Deleteसस्नेह।
यहाँ तक होता है कि आप को अपने कम अंग्रेजी ज्ञान के लिए लज्जा महसूस होती होगी पर उन्हें अपने न बराबर हिन्दी ज्ञान के लिए कोई ग्लानि नहीं होती।बिल्कुल कहा आपने|एक एक बात बिल्कुल सटीक और सही है इस लेख की! हिंदी को मान सम्मान और बढ़ाने के लिए हमें बहुत कुछ करना होगा!
ReplyDeleteसार्थक लेख
सादर.... 🙏
लेख को समर्थन देती उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ मनीषा जी।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
सुन्दर एवं सार्थक प्रयास किया है आपने इस विधा में । अन्यथा न लें तो टंकण अशुद्धियों को पुनर्निरिक्षण की आवश्यकता है । वैसे आप तो स्वयं भाषाविद् हैं । हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अमृता जी, लेखन पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से आत्मबल मुखरित हुआ।
Deleteअशुद्धियों पर ध्यान दिलवाने के लिए हृदय से आभार आपका,सदा पर प्रदर्शन करते रहें ।
सस्नेह।
हिन्दी-दिवस मनाने की सार्थकता के सम्बन्ध में एक तथ्यपरक सुन्दर विवेचना इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए लेखिका महोदया को हार्दिक बधाई देना चाहूँगा।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से लेखनी को नई ऊर्जा मिली।
सादर।
बहुत खूब कहा कुसुम जी, हम दायित्व बोध के साथ हिन्दी को नया आसमान देने के लिये सदा प्रतिबद्धता बनाएं और अब हम ये कोशिश करते रहेंगे।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अलकनंदा जी लेख पसंद आया आपको और उस में निहित भावों को भी समर्थन देती आपकी पंक्तियों ने लेखन को सार्थकता प्रदान की
Deleteसस्नेह आभार।
सही कहा आपने आ. कुसुम जी! ये हमारा दायित्व बनता है कि हम हिन्दी को शीर्ष स्थान दें...नयी पीढ़ी को इसका महत्व बताते हुए इसका सम्मान करना सिखायें...
ReplyDeleteबहुत ही सटीक एवं सार्थक
लाजवाब लेख।