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Friday, 21 January 2022

तपस्विनी माण्डवी


 तपस्विनी माण्डवी


राज भवन में एक योगिनी

आँखें नम होगी पढ़कर

क्या अपराध किया बाला ने

रखा गृह बनवास गढ़कर।


बहन स्वयंवर से आनंदित

कलिका सी सब महक रही

खंड़ हुआ शिव धनुष अखंडित 

खुशियाँ जैसे लहक रही

लगन अग्रजा का रघु कुल सुन

सारी बहने चहक रही

तभी तात की एक घोषणा

चार विदाई डोली चढ़कर।।


हुई स्तब्ध तीनों बालाएँ

लेकिन आज्ञा स्वीकारी

परिणय वेदी शुभ मंत्रों सँग

शिक्षा सब अंगीकारी

अवध महल में प्यार लुटाती

रघु कुल हुआ वशीकारी

किया सुशोभित राज धाम को

माँ गृह से शिक्षा पढ़कर।।


और नियति ने पासा पलटा

सब कुछ जैसे बदल गया

भाई के प्रति मोह साध कर

भ्रात भरत वनवास चया

त्यागा सब सुख दूर कंत से

महलों जोगन रूप लिया

तपस्विनी सी व्यथित व्यंजना

कौन माण्डवी से बढ़कर।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

31 comments:

  1. सीता के त्याग ,उर्मिला के तप की कीर्ति दशदिशि
    मांडवी का तेजोमय पतिधर्म महलों में रह हुई तपस्विनी।
    ----
    अति सुंद,मनछूती अभिव्यक्ति दी।
    पौराणिक गौरवशाली समृद्ध इतिहास के अनछुए विषय पर ध्यानाकृष्ट करवाने के लिए आभार।

    प्रणाम दी
    सादर।

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    1. सुंदर श्वेता आपकी प्रतिक्रिया भी अपने आप में एक सृजन है।
      सस्नेह आभार आपका, अभिनव प्रतिक्रिया से सृजन अपने आयाम पा गया ।
      सस्नेह।

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  2. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  3. बहुत गहन भावों को समेट कर आपने रामायण के पौराणिक पात्र मांडवी पर विचार प्रस्तुत किये । सच ही एक तपस्विनी का जीवन जिया इन्होंने ।
    अच्छी प्रस्तुति ।

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    1. हृदय से आभार आपका संगीता जी आपने रचना के मर्म को सुंदर ढंग से परिभाषित किया रचना सार्थक हुई।
      रचना को समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सादर सस्नेह।

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  4. वाह! साधुवाद! मांडवी जैसे पात्रों का उदात्त त्याग और समर्पण भाव साहित्यकारों द्वारा बहुत हद तक उपेक्षित ही रहा। आपकी यह अतीव सुंदर रचना ऐसे में अत्यंत ही सुखद प्रयोग और अनुभव दोनों है। बधाई और आभार!!!

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    1. हृदय से आभार आपका विश्व मोहन जी, आप जैसे मर्मज्ञ साहित्यकारों से सराहना पाकर रचना सार्थक हुई सच कहा आपने हमारे साहित्यकारो से बहुत से पात्र उपेक्षित रहे हैं।
      आपकी मनोरम प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हैं।
      सादर।

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. सस्नेह आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ ज्योति बहन आपकी प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ।
      सादर।

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  7. वाह!कुसुम जी ,क्या बात है !मांडवी के चरित्र का चित्रण शायद ही पहले कहीं पढा हो ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी ।
      सस्नेह।

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  8. बहन स्वयंवर से आनंदित

    कलिका सी सब महक रही

    खंड़ हुआ शिव धनुष अखंडित 

    खुशियाँ जैसे लहक रही

    सुन्दर सृजन

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    1. हृदय से आभार आपका मनोज जी।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  9. आदरणीया कुसुम जी, आपने मानस के कम चर्चित चरित्रों में एक मांडवी के चरित्र की चर्चा कर जीवंतता प्रदान करने का अद्भुत प्रयास किया है। मांडवी ने घ्र में बनवास को भोगा, यह कितना कठिन होता है, इसे आपने अपनी कविता का विषय बनाया। आपका साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना अपना मनोरथ पा गई।
      सादर।

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  10. बहुत सुन्दर !
    न जाने कितनी महिलाओं का त्याग और बलिदान अन-सुना, अन-देखा और अन-जाना रह जाता है.

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      महिलाएं और पुरुष बहुत कुछ उपेक्षित रहा है काव्य में।
      सादर आभार आपने सटीक बात कही है।

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  11. बहुत ही उम्दा व शानदार प्रस्तुति

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    1. सस्नेह आभार आपका मनीषा जी।
      आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  12. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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    1. सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  13. बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक.... माण्डवी पर बहुत ही लाजवाब नवगीत।
    सचमुच एक अनछुआ से किरदार है माण्डवी !कहीं कुछ नहीं लिखा गया माण्डवी और श्रुतकीर्ति पर...बहुत बहुत बधाई एवं कोटिश नमन🙏🙏🙏🙏

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा मेरा मनोबल बढ़ाती है।सच कहा आपने बहुत से उपेक्षित पात्रों में से माण्डवी और श्रुतकीर्ति भी हैं जिन पर न बराबर लिखा गया है।
      सस्नेह।

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  14. इतिहास के उपेक्षित पात्रों में से एक मांडवी की व्यथा कथा को बहुत ही मार्मिक शब्दों मबांधा है आपने कुसुम बहन। श्री राम के बनवास के साथ सीता संग उनका जीवन आनंद शुरू हुआ तो शेष युगल त्रि दूसरे बनवास को भुगतने पर विवश हुए। श्री राम का बनवास सामूहिक था जिसमें मांडवी भी एक घर रहकर भी बनवासी थी। एक नारी मन ही दूसरे नारी मन की थाह पा सकता है। बहुत बढ़िया लिखा आपने।

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    1. वाह रेणु बहन आपकी प्रतिक्रिया अपने आप में एक सृजन से कम नहीं विस्तृत, व्याख्यात्मक सुंदर ।
      हृदय से आभार आपका आपको सृजन पसंद आया।
      सस्नेह।

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  15. पर मुझे लगता है इस विषय को और भी विस्तार दिया जा सकता था।🙏

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    1. जी जरूर कोशिश करूंगी आगे , नवगीतों की अपनी एक मर्यादा है यहां तो इसी को निर्वहन किया है आगे कभी आल्हा या गीत में ढालूंगी इसे।
      सस्नेह।

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  16. हृदय तल से आभार आपका कामिनी जी चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
    मैं उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

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