तपस्विनी माण्डवी
राज भवन में एक योगिनी
आँखें नम होगी पढ़कर
क्या अपराध किया बाला ने
रखा गृह बनवास गढ़कर।
बहन स्वयंवर से आनंदित
कलिका सी सब महक रही
खंड़ हुआ शिव धनुष अखंडित
खुशियाँ जैसे लहक रही
लगन अग्रजा का रघु कुल सुन
सारी बहने चहक रही
तभी तात की एक घोषणा
चार विदाई डोली चढ़कर।।
हुई स्तब्ध तीनों बालाएँ
लेकिन आज्ञा स्वीकारी
परिणय वेदी शुभ मंत्रों सँग
शिक्षा सब अंगीकारी
अवध महल में प्यार लुटाती
रघु कुल हुआ वशीकारी
किया सुशोभित राज धाम को
माँ गृह से शिक्षा पढ़कर।।
और नियति ने पासा पलटा
सब कुछ जैसे बदल गया
भाई के प्रति मोह साध कर
भ्रात भरत वनवास चया
त्यागा सब सुख दूर कंत से
महलों जोगन रूप लिया
तपस्विनी सी व्यथित व्यंजना
कौन माण्डवी से बढ़कर।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सीता के त्याग ,उर्मिला के तप की कीर्ति दशदिशि
ReplyDeleteमांडवी का तेजोमय पतिधर्म महलों में रह हुई तपस्विनी।
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अति सुंद,मनछूती अभिव्यक्ति दी।
पौराणिक गौरवशाली समृद्ध इतिहास के अनछुए विषय पर ध्यानाकृष्ट करवाने के लिए आभार।
प्रणाम दी
सादर।
सुंदर श्वेता आपकी प्रतिक्रिया भी अपने आप में एक सृजन है।
Deleteसस्नेह आभार आपका, अभिनव प्रतिक्रिया से सृजन अपने आयाम पा गया ।
सस्नेह।
Nice.
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत गहन भावों को समेट कर आपने रामायण के पौराणिक पात्र मांडवी पर विचार प्रस्तुत किये । सच ही एक तपस्विनी का जीवन जिया इन्होंने ।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ।
हृदय से आभार आपका संगीता जी आपने रचना के मर्म को सुंदर ढंग से परिभाषित किया रचना सार्थक हुई।
Deleteरचना को समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया।
सादर सस्नेह।
वाह! साधुवाद! मांडवी जैसे पात्रों का उदात्त त्याग और समर्पण भाव साहित्यकारों द्वारा बहुत हद तक उपेक्षित ही रहा। आपकी यह अतीव सुंदर रचना ऐसे में अत्यंत ही सुखद प्रयोग और अनुभव दोनों है। बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका विश्व मोहन जी, आप जैसे मर्मज्ञ साहित्यकारों से सराहना पाकर रचना सार्थक हुई सच कहा आपने हमारे साहित्यकारो से बहुत से पात्र उपेक्षित रहे हैं।
Deleteआपकी मनोरम प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हैं।
सादर।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ ज्योति बहन आपकी प्रतिक्रिया से।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ।
Deleteसादर।
वाह!कुसुम जी ,क्या बात है !मांडवी के चरित्र का चित्रण शायद ही पहले कहीं पढा हो ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी ।
Deleteसस्नेह।
बहन स्वयंवर से आनंदित
ReplyDeleteकलिका सी सब महक रही
खंड़ हुआ शिव धनुष अखंडित
खुशियाँ जैसे लहक रही
सुन्दर सृजन
हृदय से आभार आपका मनोज जी।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
आदरणीया कुसुम जी, आपने मानस के कम चर्चित चरित्रों में एक मांडवी के चरित्र की चर्चा कर जीवंतता प्रदान करने का अद्भुत प्रयास किया है। मांडवी ने घ्र में बनवास को भोगा, यह कितना कठिन होता है, इसे आपने अपनी कविता का विषय बनाया। आपका साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना अपना मनोरथ पा गई।
सादर।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteन जाने कितनी महिलाओं का त्याग और बलिदान अन-सुना, अन-देखा और अन-जाना रह जाता है.
हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteमहिलाएं और पुरुष बहुत कुछ उपेक्षित रहा है काव्य में।
सादर आभार आपने सटीक बात कही है।
बहुत ही उम्दा व शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका मनीषा जी।
Deleteआपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक.... माण्डवी पर बहुत ही लाजवाब नवगीत।
ReplyDeleteसचमुच एक अनछुआ से किरदार है माण्डवी !कहीं कुछ नहीं लिखा गया माण्डवी और श्रुतकीर्ति पर...बहुत बहुत बधाई एवं कोटिश नमन🙏🙏🙏🙏
हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा मेरा मनोबल बढ़ाती है।सच कहा आपने बहुत से उपेक्षित पात्रों में से माण्डवी और श्रुतकीर्ति भी हैं जिन पर न बराबर लिखा गया है।
Deleteसस्नेह।
इतिहास के उपेक्षित पात्रों में से एक मांडवी की व्यथा कथा को बहुत ही मार्मिक शब्दों मबांधा है आपने कुसुम बहन। श्री राम के बनवास के साथ सीता संग उनका जीवन आनंद शुरू हुआ तो शेष युगल त्रि दूसरे बनवास को भुगतने पर विवश हुए। श्री राम का बनवास सामूहिक था जिसमें मांडवी भी एक घर रहकर भी बनवासी थी। एक नारी मन ही दूसरे नारी मन की थाह पा सकता है। बहुत बढ़िया लिखा आपने।
ReplyDeleteवाह रेणु बहन आपकी प्रतिक्रिया अपने आप में एक सृजन से कम नहीं विस्तृत, व्याख्यात्मक सुंदर ।
Deleteहृदय से आभार आपका आपको सृजन पसंद आया।
सस्नेह।
पर मुझे लगता है इस विषय को और भी विस्तार दिया जा सकता था।🙏
ReplyDeleteजी जरूर कोशिश करूंगी आगे , नवगीतों की अपनी एक मर्यादा है यहां तो इसी को निर्वहन किया है आगे कभी आल्हा या गीत में ढालूंगी इसे।
Deleteसस्नेह।
हृदय तल से आभार आपका कामिनी जी चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteमैं उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।