उगती भोर
नन्ही चिड़िया नीड़ छोड़कर
दृग टिमकाती है
चीं चप्पर कर छत पर बैठी
राग सुनाती है।
मंजूषा से निकला माली
सोने की पगड़ी
दप-दप शोभा बिखरी न्यारी
रतनारी तगड़ी
हीर मुद्रिका झमके देखो
झम लहराती है।
होलें पग से किरणें उतरी
पर्वत की चोटी
नील तवे पर सिकने आई
सोने की रोटी
बाल मरीची नाहन करता
भोर नहाती है।
शीतल पानी के हिण्डौले
चढ़ के झूल रहा
कलकल लोरी सुनते-सुनते
तपना भूल रहा
चट्टानों के गीत अधूरे
नदिया गाती है।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदय से आभार आपका संगीता जी मैं पांच लिंक पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर सस्नेह।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हृदय से आभार आपका चर्चा के लिए रचना को चुनने के लिए ।
Deleteमैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
वाह बहुत ही खूबसूरत!
ReplyDeleteआपने चिड़िया की चूचू का जिक्र किया इस रचना में!
मैं जब (अभी) यह रचना पढ़ रही हूं मेरी खिड़की पर एक नन्ही सी चिड़िया बैठी चू चू कर रही है और खिड़की के शीशे पर चोंच मारकर खटखटा रही है! सामने सूरज निकल रहा है ऐसा लग रहा है कि अभी लिखी जा रही है! बहुत ही अद्भुत
वाह!कितना सुखद संयोग है मनीषा, आपके सामने साक्षात जो हो रहा है वो मेरी लेखनी से निसृत हो रहा है ।
Deleteसच मन विभोर हो गया नन्ही चिड़िया का ये वर्णन।
सस्नेह आभार आपका।
भोर के आगमन को बाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteआपका रचना संसार बहुत विस्तृत रहता है हमेशा ...
हृदय से आभार आपका नासवा जी आपकी प्रशंसा पाकर लेखनी सार्थक हुई।
Deleteसादर।
वाह ! प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका। अनिता जी लेखनी उर्जावान हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
वाह!अद्भुत।
ReplyDeleteशब्दों में भावों की अथाह गहराई हृदय शीतल कर गई।
शीतल पानी के हिण्डौले
चढ़ के झूल रहा
कलकल लोरी सुनते-सुनते
तपना भूल रहा
चट्टानों के गीत अधूरे
नदिया गाती है।।.. वाह!
हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता ।
Deleteउत्साह और ऊर्जा वर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
प्राकृतिक रंगों की छटा बिखेरती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़के बेटी के लिए लिखीं पंक्तियां याद आ गईं:
भोली भाली चिड़िया रानी, लगती हो तुम कितनी प्यारी ।
रंग बिरंगे पंख तुम्हारे, उड़ कर देखो दुनिया सारी ।।
मेरी खिड़की पर आकर तुम, मीठे मीठे गीत सुनाती ।
सूरज भी उगने ना पाए, उससे पहले मुझे जगाती ।।
हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी ।
Deleteआपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन आदरणीय मेम ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका भारती जी ।
Deleteसस्नेह।
वाह!अद्भुत भाव ,खूबसूरत शब्दों की माला में पिरो दिए हैं सखी कुसुम जी आपनें ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका शुभा जी ,जब भी कोई रचना गाने योग्य लगे उसे अपने स्वर दे कर धन्य करें ।
Deleteसस्नेह।
होलें पग से किरणें उतरी
ReplyDeleteपर्वत की चोटी
नील तवे पर सिकने आई
सोने की रोटी
बाल मरीची नाहन करता
भोर नहाती है।
अहा!!!
नील तवे पर सोने की रोटी!
अद्भुत!!!
बहुत ही मनभावन सृजन
वाह!!!
हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना नव सृजन को मुखरित होती है ।
Deleteसस्नेह।