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Sunday, 30 January 2022

उगती भोर


 उगती भोर


नन्ही चिड़िया नीड़ छोड़कर

दृग टिमकाती है

चीं चप्पर कर छत पर बैठी

राग सुनाती है।


मंजूषा से निकला माली

सोने की पगड़ी

दप-दप शोभा बिखरी न्यारी

रतनारी तगड़ी

हीर मुद्रिका झमके देखो

झम लहराती है।


होलें पग से किरणें उतरी

पर्वत की चोटी

नील तवे पर सिकने आई

सोने की रोटी

बाल मरीची नाहन करता

भोर नहाती है।


शीतल पानी के हिण्डौले

चढ़ के झूल रहा

कलकल लोरी सुनते-सुनते

तपना भूल रहा

चट्टानों के गीत अधूरे 

नदिया गाती है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

24 comments:

  1. आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका संगीता जी मैं पांच लिंक पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका चर्चा के लिए रचना को चुनने के लिए ।
      मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  3. वाह बहुत ही खूबसूरत!
    आपने चिड़िया की चूचू का जिक्र किया इस रचना में!
    मैं जब (अभी) यह रचना पढ़ रही हूं मेरी खिड़की पर एक नन्ही सी चिड़िया बैठी चू चू कर रही है और खिड़की के शीशे पर चोंच मारकर खटखटा रही है! सामने सूरज निकल रहा है ऐसा लग रहा है कि अभी लिखी जा रही है! बहुत ही अद्भुत

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    1. वाह!कितना सुखद संयोग है मनीषा, आपके सामने साक्षात जो हो रहा है वो मेरी लेखनी से निसृत हो रहा है ।
      सच मन विभोर हो गया नन्ही चिड़िया का ये वर्णन।
      सस्नेह आभार आपका।

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  4. भोर के आगमन को बाखूबी लिखा है ...
    आपका रचना संसार बहुत विस्तृत रहता है हमेशा ...

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    1. हृदय से आभार आपका नासवा जी आपकी प्रशंसा पाकर लेखनी सार्थक हुई।
      सादर।

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  5. वाह ! प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन

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    1. जी हृदय से आभार आपका। अनिता जी लेखनी उर्जावान हुई।
      सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

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  7. वाह!अद्भुत।
    शब्दों में भावों की अथाह गहराई हृदय शीतल कर गई।

    शीतल पानी के हिण्डौले
    चढ़ के झूल रहा
    कलकल लोरी सुनते-सुनते
    तपना भूल रहा
    चट्टानों के गीत अधूरे
    नदिया गाती है।।.. वाह!

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    1. हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता ।
      उत्साह और ऊर्जा वर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  8. प्राकृतिक रंगों की छटा बिखेरती सुंदर रचना ।
    आपकी रचना पढ़के बेटी के लिए लिखीं पंक्तियां याद आ गईं:
    भोली भाली चिड़िया रानी, लगती हो तुम कितनी प्यारी ।
    रंग बिरंगे पंख तुम्हारे, उड़ कर देखो दुनिया सारी ।।
    मेरी खिड़की पर आकर तुम, मीठे मीठे गीत सुनाती ।
    सूरज भी उगने ना पाए, उससे पहले मुझे जगाती ।।

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    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी ।
      आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  9. प्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन आदरणीय मेम ।

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    1. हृदय से आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  10. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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    1. हृदय से आभार आपका भारती जी ।
      सस्नेह।

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  11. वाह!अद्भुत भाव ,खूबसूरत शब्दों की माला में पिरो दिए हैं सखी कुसुम जी आपनें ।

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    1. हृदय से आभार आपका शुभा जी ,जब भी कोई रचना गाने योग्य लगे उसे अपने स्वर दे कर धन्य करें ।
      सस्नेह।

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  12. होलें पग से किरणें उतरी

    पर्वत की चोटी

    नील तवे पर सिकने आई

    सोने की रोटी

    बाल मरीची नाहन करता

    भोर नहाती है।
    अहा!!!
    नील तवे पर सोने की रोटी!
    अद्भुत!!!
    बहुत ही मनभावन सृजन
    वाह!!!

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना नव सृजन को मुखरित होती है ।
      सस्नेह।

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