असर अब गहरा होगा
फ़क़त खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा
मुसलसल बह गया तो फिर बस समंदर होगा ।
दिन ढलते ही आँचल आसमां का सुर्ख़रू होगा।
रात का सागर लहराया न जाने कब सवेरा होगा।
तारों ने बिसात उठा ली असर अब गहरा होगा ।
चांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।
छुपा है परदों में कितने,जाने क्या राज़ गहरा होगा ।
अब्र के छटते ही बेनक़ाब चांद का चेहरा होगा ।
साये दिखने लगे चिनारों पे, जाने अब क्या होगा।
मुल्कों के तनाव से चनाब का पानी ठहरा होगा ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह!कुसुम जी ,बेहतरीन!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुभा जी।
Deleteमन प्रसन्न हुआ।
सस्नेह।
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से।
Deleteअच्छी रचना है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
Deleteतारों ने बिसात उठा ली असर अब गहरा होगा ।
ReplyDeleteचांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।
वाह!!!
लाजवाब सृजन
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा मेरी रचना को प्रवाह और मुझे नव उर्जा देते हैं।
Deleteबहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से सदा मन खुश होता है
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आपका आदरणीय मैं जरूर मंच परि उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
पहरा अंधेरों का ही है।
ReplyDeleteदर्पणसरीखी रचना।
वाह
अप्रतिम रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका दी।
Deleteरचना सार्थक हुई।
बहुत बहुत आभार आपका दिव्यता जी पाँच लिंक पर आना हमेशा एक शानदार अनुभव है।
ReplyDeleteसस्नेह।
पर्दों में छुपे राज़ कभी तो निकल ही आते हैं ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत शेर हैं ...