हास परिहास
रूठी प्रिया।
अब लाए उपहार बलम जी
कैसे तुम से बोलूं
जन्म दिवस तक भूल गये हो
क्यों निज मुख अब खोलूँ ।।
वादे कितने लम्बे चौड़े
तारे नभ के लाऊँ
तेरे लिए गोर गजधन
एक ताज बनवाऊँ
लेकर हाथ फूल की अवली
आगे पीछे डोलूँ ।।
एक बना दूँ स्वर्ण तगड़िया
हाथों कंगन भारी
लाके दूँ मोती के झुमके
हो तुम पर बलिहारी
टीका नथनी माणिक वाली
तुम्हे हीर से तोलूँ।।
इक हिण्ड़ोला नभ पर डालूँ
उड़ने वाली गाड़ी
परियों जैसा रूप सँवारूँ
बिजली गोटा साड़ी
मेरे मन प्राणों की रानी
जीवन में मधु घोलूँ ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
एक हिंडोला नभ पर डालूं .... वाह अद्भुद
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सदा जी ।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत बहुत मधुर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 28 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बलम जी भूलें तब तो रूठी प्रिया मुख इतना ही खोली .... जो इससे ज्यादा खोलती तो .....
ReplyDeleteजी भूचाल आ जाता।
Deleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार।
आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
हमारी माँगें और अपने वादे पूरे करो बलम जी!
ReplyDeleteवाह!!!!
मजेदार.... लाजवाब।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
सादर आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteनववर्ष की मंगलमय शुभकामनाएं।
मोहक प्रतिक्रिया सुधा जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
नववर्ष आपको और सकल परिवार को मंगलमय रहे।।