कदाचार
एक लालसा में लिपटा है
किसे बुलाता कर मंथन।
मोद झूठ है पल दो पल का
देता तमस औ अचिंतन ।
जब जब चढ़ता नशा क्रोध का
आंखों में उफने लोहित
बान समझ कर अकबक बकता
विकराल काल ज्यों मोहित
करे धोंकनी सा धुक धुक फिर
बढ़ता उर में फिर स्पंदन।।
प्रवंचना का जाल बिछाकर
मनुज मनुज को ठगता है
छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
रात दिवस फिर भगता है
कदाचार में आसक्त रहे
सदभावों का हुआ हनन।।
विषय मोह में उलझा प्राणी
पतन राह को गमन करे
समय रहते सँभल जो जाये
विनाश पथ का शमन करे
लोभ कपट अब व्यसन रोग से
मुक्ति युक्ति का कर चिंतन।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
प्रवंचना का जाल बिछाकर
ReplyDeleteमनुज मनुज को ठगता है
छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
रात दिवस फिर भगता है
कदाचार में आसक्त रहे
सदभावों का हुआ हनन।।
..सारगर्भित तथ्यों को उजागर करती सशक्त रचना..।
रचना में गहराई से उतर उसके भावों का मंथन कर आपने रचना को नया प्रवाह दिया।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सस्नेह।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteमुखरित मौन मेंं रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर ।
उम्दा रचना
ReplyDeleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर आभार आपका।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर और विचारपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
मुग्ध करती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteजी मैं अनुग्रहित हूं,रचना को नये आयाम मिले।
Deleteसादर आभार आपका।
मानव जीवन को सचेत करती और जीवनानुपयोगी संदेश समेटे चिंतनपरक रचना ।
ReplyDeleteमीना जी आपकी व्याख्यात्मक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteप्रवंचना का जाल बिछाकर
ReplyDeleteमनुज मनुज को ठगता है
छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
रात दिवस फिर भगता है
कदाचार में आसक्त रहे
सदभावों का हुआ हनन।।
यथार्थपरक बहुत सुंदर रचना...
बहुत बहुत आभार आपका रचना को गहनता से समझने के लिए , लेखन सफल हुआ ।
Deleteसस्नेह।
हार्दिक अभिलाषा तो यही है कि केवल चिंतन ही नहीं अपितु वरण हो मुक्ति युक्ति । अति सुन्दर कथ्य ।
ReplyDeleteजी सुंदर अभिलाषा भाव जब शुद्ध हो तो वरण सहज ही होने लगता है ।
Deleteरचना के भावों पर विहंगम दृष्टि ने रचना को अर्थ दिया।
सस्नेह आभार आपका।
बहुत ही सुंदर सीख देती रचना, हमेशा की तरह लाजबाव सृजन,सादर नमस्कार कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया सदा लेखन में विश्वास बढ़ाती है ।
Deleteसस्नेह।
प्रवंचना का जाल बिछाकर
ReplyDeleteमनुज मनुज को ठगता है
छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
रात दिवस फिर भगता है
कदाचार में आसक्त रहे
सदभावों का हुआ हनन।।
बहुत सटीक सुन्दर एवं सार्थक
लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया सदा मुझे नव उर्जा देती है।
Deleteसस्नेह।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत आभार आपका आदरणीय उत्साह वर्धन के लिए।
Deleteविषय मोह में उलझा प्राणी
ReplyDeleteपतन राह को गमन करे
समय रहते सँभल जो जाये
विनाश पथ का शमन करे
सुन्दर रचना....
सुंदर सक्रियता के लिए ढेर सा आभार उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार अपर्णा जी।
Deleteबेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीया कुसुम जी।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteजी मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सस्नेह
सुंदर संदेश देती रचना।
ReplyDeleteसार्थक चिंतन हमेशा अच्छे मार्ग को प्रेरित करता है ... सन्देश देती गहरी रचना ...
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