अप्रतिम सौन्दर्य
हिम से आच्छादित
अनुपम पर्वत श्रृंखलाएँ
मानो स्फटिक रेशम हो बिखर गया
उस पर ओझल होते
भानु की श्वेत स्वर्णिम रश्मियाँ
जैसे आई हो श्रृँगार करने उनका
कुहासे से ढकी उतंग चोटियाँ
मानो घूँघट में छुपाती निज को
धुएँ सी उडती धुँध
ज्यों देव पाकशाला में
पकते पकवानों की वाष्प गंध
उजालों को आलिंगन में लेती
सुरमई सी तैरती मिहिकाएँ
पेड़ों पर छिटके हिम-कण
मानो हीरण्य कणिकाएँ बिखरी पड़ी हों
मैदानों तक पसरी बर्फ़ जैसे
किसी धवल परी ने आंचल फैलया हो
पर्वत से निकली कृष जल धाराएँ
मानो अनुभवी वृद्ध के
बालों की विभाजन रेखा
चीङ,देवदार,अखरोट,सफेदा,चिनार
चारों और बिखरे उतंग विशाल सुरम्य
कुछ सर्द की पीड़ा से उजड़े
कुछ आज भी तन के खड़े
आसमां को चुनौती देते
कल कल के मद्धम स्वर में बहती नदियाँ
उनसे झांकते छोटे बड़े शिला खंड
उन पर बिछा कोमल हिम आसन
ज्यों ऋषियों को निमंत्रण देता साधना को
प्रकृति ने कितना रूप दिया कश्मीर को
हर ऋतु अपरिमित अभिराम अनुपम
शब्दों में वर्णन असम्भव।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
" गिरा अनयन नयन बिनु बानी "
सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
Deleteसादर।
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका,आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
आपने बहुत मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किया कविता के माध्यम से कुसुम जी..सुन्दर कृति..शुभकामनायें मेरी तरफ से..।।
ReplyDeleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1980...सुरमई-सी तैरती मिहिकाएँ...) पर गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी मंच पर सादर।
Deleteअनुपम,अप्रतिम, अतिसुंदर रचना दी।
ReplyDeleteप्रकृति के सौन्दर्य को मनोहारी शब्दों की माला में पिरोने की कला आपकी लेखनी की विशेषता है।
सादर प्रणाम दी।
आप आये बहार आई! बहना रचना सार्थक हुई आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया से,आपको पता है प्रकृति और छायावाद मेरी पहली पसंद है।
Deleteढेर सा स्नेह आभार।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी, उत्साह वर्धन के लिए।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
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ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसस्नेह।
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteमन प्रसन्न हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
सस्नेह।
प्रकृति के सौन्दर्य की बहुत ही मनोहर छटा बिखेर दी आपने मन आँगन में....
ReplyDeleteवाह!!!
अद्भुत अप्रतिम लाजवाब।
बहुत बहुत सा आभार आपका सुधा जी,आपकी उपस्थिति ही मेरी रचना का उपहार है ।
Deleteसस्नेह।
वाह!लाजवाब सृजन दी काफ़ी बार पढ़ चुकी हूँ।
ReplyDeleteहर बार बस वाह!
सराहनीय शब्द चित्र।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार बहना आपकी मोहक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
सशक्त और सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर आभार आपका।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका रचना सार्थक हुई।
Deleteसादर।
अद्धभुत
ReplyDeleteसस्नेह आभार बहना आप की प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिलता है।
Deleteसस्नेह।
कश्मीर के अप्रतिम सौन्दर्य का सुंदर वर्णन !
ReplyDeleteमैं अभिभूत हूं ,सस्नेह आभार आपका।
Deleteवाह ! बहुत खूब
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteमुग्ध करती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteशब्दों का केनवास खड़ा कर दिया ... मोहक प्रकृति का नज़ारा ...
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