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Friday, 11 December 2020

हिमालय पर वर्ण पिरामिड


 हिमालय पर चार वर्ण पिरामिड रचनाऐं। 

मैं
मौन
अटल
अविचल
आधार धरा
धरा के आँचल
स्नेह बंधन पाया।

ये
स्वर्ण
आलोक
चोटी पर
बिखर गया 
पर्वतों के पीछे
भास्कर मुसकाया।

हूँ
मैं भी
बहती
अनुधारा
अविरल सी
उन्नत हिम का
बहता अनुराग।

लो
फिर
झनकी
मधु वीणा
पर्वत राज
गर्व से हर्षया 
फहराया तिरंगा।

10 comments:


  1. लो
    फिर
    झनकी
    मधु वना
    पर्वत राज
    अनुराग हर्षया
    फहराया तिंरगा।
    ..मनोहारी दृश्यों में बाँधती सुंदर एवं गूढ़ कृति..।

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  2. गूढ भाओं से सजी ऊत्तम रचना

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. हिमालय की स्वर्णिम आभा बिखेर दिया है । अति सुंदर ।

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  5. प्रकृति का मनमोहक वर्णन.. वर्ण पिरामिड में..अद्भुत व मनमोहक । अत्यंत सुन्दर ।

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  6. सभी पिरामिड बहुत सुन्दर !

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  7. अद्वितीय रचना,प्रभावशाली लेखन।

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  8. लेखन की ये कला खूब लगी।
    भाव बहुत मनमोहक।

    नई रचना- समानता

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