हिमालय पर चार वर्ण पिरामिड रचनाऐं।
मैं
मौन
अटल
अविचल
आधार धरा
धरा के आँचल
स्नेह बंधन पाया।
ये
स्वर्ण
आलोक
चोटी पर
बिखर गया
पर्वतों के पीछे
भास्कर मुसकाया।
हूँ
मैं भी
बहती
अनुधारा
अविरल सी
उन्नत हिम का
बहता अनुराग।
लो
फिर
झनकी
मधु वीणा
पर्वत राज
गर्व से हर्षया
फहराया तिरंगा।
ReplyDeleteलो
फिर
झनकी
मधु वना
पर्वत राज
अनुराग हर्षया
फहराया तिंरगा।
..मनोहारी दृश्यों में बाँधती सुंदर एवं गूढ़ कृति..।
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteगूढ भाओं से सजी ऊत्तम रचना
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत खूब
ReplyDeleteहिमालय की स्वर्णिम आभा बिखेर दिया है । अति सुंदर ।
ReplyDeleteप्रकृति का मनमोहक वर्णन.. वर्ण पिरामिड में..अद्भुत व मनमोहक । अत्यंत सुन्दर ।
ReplyDeleteसभी पिरामिड बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअद्वितीय रचना,प्रभावशाली लेखन।
ReplyDeleteलेखन की ये कला खूब लगी।
ReplyDeleteभाव बहुत मनमोहक।
नई रचना- समानता