Tuesday, 8 December 2020

असर अब गहरा होगा।


 असर अब गहरा होगा
फ़क़त खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा
मुसलसल  बह गया तो फिर बस समंदर होगा । 

दिन ढलते ही आँचल आसमां का सुर्ख़रू होगा।
रात का सागर लहराया न जाने कब सवेरा होगा।

तारों ने बिसात उठा ली असर अब  गहरा होगा ।
चांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।

छुपा है परदों में कितने,जाने क्या राज़ गहरा होगा ।
अब्र के छटते ही बेनक़ाब  चांद का चेहरा होगा । 

साये दिखने लगे  चिनारों पे, जाने अब क्या होगा।
मुल्कों के तनाव से चनाब का पानी ठहरा होगा ।
                   
                    कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

17 comments:

  1. वाह!कुसुम जी ,बेहतरीन!

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    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी।
      मन प्रसन्न हुआ।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।

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  4. तारों ने बिसात उठा ली असर अब गहरा होगा ।
    चांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा मेरी रचना को प्रवाह और मुझे नव उर्जा देते हैं।

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  5. बहुत सुंदर रचना सखी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      आपकी प्रतिक्रिया से सदा मन खुश होता है

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सादर आभार आपका आदरणीय मैं जरूर मंच परि उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  7. पहरा अंधेरों का ही है।
    दर्पणसरीखी रचना।
    वाह

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    1. बहुत बहुत आभार आपका दी।
      रचना सार्थक हुई।

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  9. बहुत बहुत आभार आपका दिव्यता जी पाँच लिंक पर आना हमेशा एक शानदार अनुभव है।
    सस्नेह।

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  10. पर्दों में छुपे राज़ कभी तो निकल ही आते हैं ...
    बहुत खूबसूरत शेर हैं ...

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