ये रजत बूंटों से सुसज्जित नीलम सा आकाश
ज्यों निलांचल पर हिरकणिका जडी चांदी तारों में
फूलों ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के
आई चंद्रिका इठलाती पसरी बिस्तर पे लतिका के
विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है
छूता निज चपल चांदनी से सरसी हरित धरा को है
स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
जाते जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में
ये रात है या सौगात है अनुपम कोई कुदरत की
जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे विश्व आंगन में
कुसुम कोठारी ।
ज्यों निलांचल पर हिरकणिका जडी चांदी तारों में
फूलों ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के
आई चंद्रिका इठलाती पसरी बिस्तर पे लतिका के
विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है
छूता निज चपल चांदनी से सरसी हरित धरा को है
स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
जाते जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में
ये रात है या सौगात है अनुपम कोई कुदरत की
जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे विश्व आंगन में
कुसुम कोठारी ।
ReplyDeleteये रात है या सौगात है अनुपम कोई कुदरत की
जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे विश्व आंगन में
बहुत सुंदर रचना सखी
बहुत बहुत आभार सखी आपका स्नेह सदा मिलता रहे ।
Deleteफूलों ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के
ReplyDeleteआई चंद्रिका इठलाती पसरी बिस्तर पे लतिका के...अपूर्व सौन्दर्य घोल दिया आपने .
जी बहुत बहुत आभार आपका, आपकी सराहना रचना को प्रोत्साहित करती हुई।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 07 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार आदरणीय, मै अवश्य आऊंगी ।
Deleteलाजवाब रचना.
ReplyDeleteनाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)
जी सादर आभार आपका रोहतास जी।
Deleteसुन्दर रचना सखी 👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteमनोहर शब्दावली से अलंकृत लाज़वाब रचना दी..।
ReplyDeleteरात्रि के आकाशीय श्रृँगार का अद्भुत रसपान है।
ये पंक्तियां तो बेहद अच्छी लगी
स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
जाते जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में
बहुत बहुत सुंदर👌👌
सस्नेह आभार श्वेता आपकी शानदार प्रतिक्रिया रचना को मुखरित करती सी।
Deleteविधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है
ReplyDeleteछूता निज चपल चांदनी से सरसी हरित धरा को है
वाह!!!!
बहुत लाजवाब रचना कुसुम जी...सचमुच तिलिस्मी...
सुधा जी आपका किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं समझ नही आता, मन को खुश करती आपकी प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह सखी।
अनुपम रचना है ...
ReplyDeleteआकश, झील और श्यामान चांदनी का एहसास मधुर रंग घोल रहा है ...
लाजवाब ...
रचना का मंथन नवनीत आपकी लेखनी से दिगम्बर जी बहुत सा आभार।
Deleteसादर।
बहुत बहुत आभार अमित जी आपकी अतिउत्तम लेखनी से सराहना रचना को और संबल देती है ।
ReplyDeleteसादर।
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
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