Friday, 5 October 2018

कैसा तिलिस्म विधु का

ये रजत बूंटों से सुसज्जित नीलम सा आकाश
ज्यों निलांचल पर हिरकणिका जडी चांदी तारों में

फूलों  ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के
आई चंद्रिका इठलाती पसरी बिस्तर पे लतिका के

विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है
छूता निज चपल चांदनी से सरसी हरित  धरा को है

स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
जाते जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में

ये रात है या सौगात है अनुपम  कोई कुदरत की
जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे  विश्व आंगन में

              कुसुम कोठारी ।

19 comments:


  1. ये रात है या सौगात है अनुपम कोई कुदरत की
    जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे विश्व आंगन में
    बहुत सुंदर रचना सखी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी आपका स्नेह सदा मिलता रहे ।

      Delete
  2. फूलों ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के
    आई चंद्रिका इठलाती पसरी बिस्तर पे लतिका के...अपूर्व सौन्दर्य घोल दिया आपने .

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, आपकी सराहना रचना को प्रोत्साहित करती हुई।

      Delete
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 07 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आदरणीय, मै अवश्य आऊंगी ।

      Delete
  4. Replies
    1. जी सादर आभार आपका रोहतास जी।

      Delete
  5. सुन्दर रचना सखी 👌

    ReplyDelete
  6. मनोहर शब्दावली से अलंकृत लाज़वाब रचना दी..।
    रात्रि के आकाशीय श्रृँगार का अद्भुत रसपान है।
    ये पंक्तियां तो बेहद अच्छी लगी
    स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में
    जाते जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में
    बहुत बहुत सुंदर👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार श्वेता आपकी शानदार प्रतिक्रिया रचना को मुखरित करती सी।

      Delete
  7. विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है
    छूता निज चपल चांदनी से सरसी हरित धरा को है
    वाह!!!!
    बहुत लाजवाब रचना कुसुम जी...सचमुच तिलिस्मी...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुधा जी आपका किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं समझ नही आता, मन को खुश करती आपकी प्रतिक्रिया।
      सस्नेह सखी।

      Delete
  8. अनुपम रचना है ...
    आकश, झील और श्यामान चांदनी का एहसास मधुर रंग घोल रहा है ...
    लाजवाब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना का मंथन नवनीत आपकी लेखनी से दिगम्बर जी बहुत सा आभार।
      सादर।

      Delete
  9. बहुत बहुत आभार अमित जी आपकी अतिउत्तम लेखनी से सराहना रचना को और संबल देती है ।
    सादर।

    ReplyDelete
  10. बहुत ही सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।

      Delete