Wednesday, 3 October 2018

बैकुंठ में कश्मीर

बैकुंठ में रच दो कश्मीर

क्यों न रमने आते प्रभु तुम
इस अतुलित आंगन में
क्या कैद कर दिया है तुम को
तेरे ही मानव ने
एक बार उतर के आओ
फिर फिर तुम आवोगे
मंदिर और शिवालों से
ज्यादा आनंद पावोगे
अपनी बनाई रचना क्या
कभी न तुम को लुभाती
क्या कभी मां लक्ष्मी भी
आने की चाह दिखाती
एक बार आऐगी
तो संकट तूझ पर आयेगा
बैकुंठ में रच दो कश्मीर
जब ऐसा हट मचाऐगी
क्यों न रमने आते प्रभु तुम..

          कुसुम कोठरी ।

12 comments:

  1. वाह!!बहुत खूब सखी 👌

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    1. जी सखी आपका स्नेह है, उत्साह वर्धन का बहुत बहुत शुक्रिया।

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  2. बहुत सुंदर रचना 👌
    एक बार उतर के आओ
    फिर फिर तुम आवोगे
    मंदिर और शिवालों से
    ज्यादा आनंद पावोगे

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी उपस्थिति भर से रचना को गति मिलती है ।

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  3. क्यों न रमने आते प्रभु तुम
    इस अतुलित आंगन में
    क्या कैद कर दिया है तुम को
    तेरे ही मानव ने
    बहुत ही सुंदर रचना 🙏 लेखनी को

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    1. बहुत बहुत आभार अभिलाषा जी आप सब का स्नेह है ।
      🙏नमन तो सदा आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों को है।

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  4. वाह ,

    दिल को झकझोरने वाली बात लिख दी हैं आपने

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    1. जी सादर आभार आपका रचना सार्थक हुई ।

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  5. बहुत बहुत सुंदर

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    1. जी सादर आभार आपका लोकेश जी।

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  6. प्रभू को भी तो बांध दिया है इंसानों ने अपने अप्पने धर्म में ...
    बहुत कुछ कहती है आपकी रचना...

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    1. जी बहुत सा आभार दिगम्बर जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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