बैकुंठ में रच दो कश्मीर
क्यों न रमने आते प्रभु तुम
इस अतुलित आंगन में
क्या कैद कर दिया है तुम को
तेरे ही मानव ने
एक बार उतर के आओ
फिर फिर तुम आवोगे
मंदिर और शिवालों से
ज्यादा आनंद पावोगे
अपनी बनाई रचना क्या
कभी न तुम को लुभाती
क्या कभी मां लक्ष्मी भी
आने की चाह दिखाती
एक बार आऐगी
तो संकट तूझ पर आयेगा
बैकुंठ में रच दो कश्मीर
जब ऐसा हट मचाऐगी
क्यों न रमने आते प्रभु तुम..
कुसुम कोठरी ।
क्यों न रमने आते प्रभु तुम
इस अतुलित आंगन में
क्या कैद कर दिया है तुम को
तेरे ही मानव ने
एक बार उतर के आओ
फिर फिर तुम आवोगे
मंदिर और शिवालों से
ज्यादा आनंद पावोगे
अपनी बनाई रचना क्या
कभी न तुम को लुभाती
क्या कभी मां लक्ष्मी भी
आने की चाह दिखाती
एक बार आऐगी
तो संकट तूझ पर आयेगा
बैकुंठ में रच दो कश्मीर
जब ऐसा हट मचाऐगी
क्यों न रमने आते प्रभु तुम..
कुसुम कोठरी ।
वाह!!बहुत खूब सखी 👌
ReplyDeleteजी सखी आपका स्नेह है, उत्साह वर्धन का बहुत बहुत शुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteएक बार उतर के आओ
फिर फिर तुम आवोगे
मंदिर और शिवालों से
ज्यादा आनंद पावोगे
सस्नेह आभार सखी आपकी उपस्थिति भर से रचना को गति मिलती है ।
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ReplyDeleteक्यों न रमने आते प्रभु तुम
इस अतुलित आंगन में
क्या कैद कर दिया है तुम को
तेरे ही मानव ने
बहुत ही सुंदर रचना 🙏 लेखनी को
बहुत बहुत आभार अभिलाषा जी आप सब का स्नेह है ।
Delete🙏नमन तो सदा आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों को है।
वाह ,
ReplyDeleteदिल को झकझोरने वाली बात लिख दी हैं आपने
जी सादर आभार आपका रचना सार्थक हुई ।
Deleteबहुत बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका लोकेश जी।
Deleteप्रभू को भी तो बांध दिया है इंसानों ने अपने अप्पने धर्म में ...
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती है आपकी रचना...
जी बहुत सा आभार दिगम्बर जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
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