बादलों की डोलची
नीलम सा नभ उस पर खाली डोलची लिये
स्वच्छ बादलों का स्वच्छंद विचरण
अब उन्मुक्त हैं कर्तव्य भार से
सारी सृष्टि को जल का वरदान
मुक्त हस्त दे आये सहृदय
अब बस कुछ दिन यूंही झूमते घूमना
चाँद से अठखेलियां,हवा से होड
नाना नयनाभिराम रूप मृदुल, श्वेत
चाँद की चांदनी में चांदी सा चमकना
उड उड यहां वहां बह जाना फिर थमना
धवल शशक सा आजाद विचरन करना
कल फिर शुरू करना है कर्म पथ का सफर
फिर खेतों में खलिहानों में बरसना
फिर पहाडों पे , नदिया पे गरजना
मानो धरा को सींचने स्वयं न्योछावर होना।
कुसुम कोठारी।
नीलम सा नभ उस पर खाली डोलची लिये
स्वच्छ बादलों का स्वच्छंद विचरण
अब उन्मुक्त हैं कर्तव्य भार से
सारी सृष्टि को जल का वरदान
मुक्त हस्त दे आये सहृदय
अब बस कुछ दिन यूंही झूमते घूमना
चाँद से अठखेलियां,हवा से होड
नाना नयनाभिराम रूप मृदुल, श्वेत
चाँद की चांदनी में चांदी सा चमकना
उड उड यहां वहां बह जाना फिर थमना
धवल शशक सा आजाद विचरन करना
कल फिर शुरू करना है कर्म पथ का सफर
फिर खेतों में खलिहानों में बरसना
फिर पहाडों पे , नदिया पे गरजना
मानो धरा को सींचने स्वयं न्योछावर होना।
कुसुम कोठारी।
सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteबहुत सुंदर भाव है इस रचना के सखी
ReplyDeleteआपका स्नेह है सखी,
Deleteसस्नेह आभार ।
बेहतरीन रचना कुसुम दी 🙏
ReplyDeleteसस्नेह आभार अभिलाषा बहन ।
Deleteकर्म पथ तो यही है बादलों का ...
ReplyDeleteस्वयं को मिटा देना किसी के प्रेम या कर्तव्य की ख़ातिर ...
बहुत सुंदर रचना ...
बहुत बहुत आभार नासवा जी।
Deleteआपकी सराहना सदा लेखन को संबल देता है।
बहुत ही सुन्दर ...मनभावन सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रिय सखी।
Deleteअतिसुन्दर भाव दी
ReplyDeleteसस्नेह आभार बहना ।
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