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Friday, 28 September 2018

छविकार चित्रकारा

.          तुम्ही छविकार चित्रकारा

तप्त से इस जग में हो बस तुम ही अनुधारा
तुम्ही रंगरेज तुम्ही छविकार, मेरे चित्रकारा
रंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
रंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।

हे सुरभित बिन्दु मेरे ललाट के अविरल
तेरे संग ही जीवन मेरा प्रतिपल चला-चल
मन मंदिर में प्रज्जवलित दीप से उजियारे हो
इस बहती धारा में साहिल से बांह पसारे हो।

सांझ ढले लौट के आते मन खग के नीड़ तुम्ही
विश्रांति के पल- छिन में हो शांत सुधाकर तुम्ही
मेरी जीवन नैया के सुदृढ़ नाविक हो तुम्ही
सदाबहार खिला रहे उस फूल की शाख तुम्ही।।

                     कुसुम कोठारी।

16 comments:


  1. हे सुरभित बिन्दु मेरे ललाट के अविरल
    तेरे संग ही जीवन मेरा प्रतिपल चला-चल
    बहुत सुंदर भावों से सजी हुई बहुत ही बेहतरीन रचना सखी

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा मन मोहक लगती है

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  2. वाह
    प्रेम के रंग अनेक लेकिन सभी उसी एक से रंगीन है.
    रंगसाज़

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    1. जी सही, सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिये ।

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  3. बहुत सुंदर रचना ....बेहतरीन 👌👌👌

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी सस्नेह आभार, जी आऊंगी जरूर

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  5. बेहतरीन रचना सखी
    आपकी लेखनी कैसे सराहना करु शब्द नहीं

    सांझ ढले लौट के आते मन खग के नीड़ तुम्ही
    विश्रांति के पल- छिन में हो शांत सुधाकर तुम्ही
    उम्दा 👌

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    1. सखी आपकी शानदार सराहना से रचना को और प्रवाह मिला, सस्नेह आभार सखी।

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  6. तप्त से इस जग में हो बस तुम ही अनुधारा
    तुम्ही रंगरेज तुम्ही छविकार, मेरे चित्रकारा
    रंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
    रंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।....बहुत सुंदर भाव कुसुम ज़ी

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    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है दीपशिखा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा सस्नेह आभार ।

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  7. रंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
    रंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।
    बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

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    1. सस्नेह आभार सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।

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