. तुम्ही छविकार चित्रकारा
तप्त से इस जग में हो बस तुम ही अनुधारा
तुम्ही रंगरेज तुम्ही छविकार, मेरे चित्रकारा
रंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
रंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।
हे सुरभित बिन्दु मेरे ललाट के अविरल
तेरे संग ही जीवन मेरा प्रतिपल चला-चल
मन मंदिर में प्रज्जवलित दीप से उजियारे हो
इस बहती धारा में साहिल से बांह पसारे हो।
सांझ ढले लौट के आते मन खग के नीड़ तुम्ही
विश्रांति के पल- छिन में हो शांत सुधाकर तुम्ही
मेरी जीवन नैया के सुदृढ़ नाविक हो तुम्ही
सदाबहार खिला रहे उस फूल की शाख तुम्ही।।
कुसुम कोठारी।
तप्त से इस जग में हो बस तुम ही अनुधारा
तुम्ही रंगरेज तुम्ही छविकार, मेरे चित्रकारा
रंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
रंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।
हे सुरभित बिन्दु मेरे ललाट के अविरल
तेरे संग ही जीवन मेरा प्रतिपल चला-चल
मन मंदिर में प्रज्जवलित दीप से उजियारे हो
इस बहती धारा में साहिल से बांह पसारे हो।
सांझ ढले लौट के आते मन खग के नीड़ तुम्ही
विश्रांति के पल- छिन में हो शांत सुधाकर तुम्ही
मेरी जीवन नैया के सुदृढ़ नाविक हो तुम्ही
सदाबहार खिला रहे उस फूल की शाख तुम्ही।।
कुसुम कोठारी।
ReplyDeleteहे सुरभित बिन्दु मेरे ललाट के अविरल
तेरे संग ही जीवन मेरा प्रतिपल चला-चल
बहुत सुंदर भावों से सजी हुई बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा मन मोहक लगती है
Deleteवाह
ReplyDeleteप्रेम के रंग अनेक लेकिन सभी उसी एक से रंगीन है.
रंगसाज़
जी सही, सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिये ।
Deleteबहुत सुंदर रचना ....बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteसखी बहुत बहुत आभार
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी सस्नेह आभार, जी आऊंगी जरूर
Deleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteआपकी लेखनी कैसे सराहना करु शब्द नहीं
सांझ ढले लौट के आते मन खग के नीड़ तुम्ही
विश्रांति के पल- छिन में हो शांत सुधाकर तुम्ही
उम्दा 👌
सखी आपकी शानदार सराहना से रचना को और प्रवाह मिला, सस्नेह आभार सखी।
Deleteतप्त से इस जग में हो बस तुम ही अनुधारा
ReplyDeleteतुम्ही रंगरेज तुम्ही छविकार, मेरे चित्रकारा
रंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
रंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।....बहुत सुंदर भाव कुसुम ज़ी
ब्लॉग पर आपका स्वागत है दीपशिखा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा सस्नेह आभार ।
Deleteरंग सात नही सौ रंगो से रंग दिया तूने मुझको
ReplyDeleteरंगाई ना दे पाई तेरे पावन चित्रों की तुझको।
बहुत लाजवाब...
वाह!!!
सस्नेह आभार सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Delete