तीन क्षणिकाएं
मन
मन क्या है एक द्वंद का भंवर है
मंथन अनंत बार एक से विचार है
भंवर उसी पानी को अथक घुमाता है
मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।
अंहकार
अंहकार क्या है एक मादक नशा है
बार बार सेवन को उकसाता रहता है
मादकता बार बार सर चढ बोलती है
अंहकार सर पे ताल ठोकता रहता है।
क्रोध
क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
आग विनाश का प्रतिरूप जब धरती है
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।
कुसुम कोठारी।
मन
मन क्या है एक द्वंद का भंवर है
मंथन अनंत बार एक से विचार है
भंवर उसी पानी को अथक घुमाता है
मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।
अंहकार
अंहकार क्या है एक मादक नशा है
बार बार सेवन को उकसाता रहता है
मादकता बार बार सर चढ बोलती है
अंहकार सर पे ताल ठोकता रहता है।
क्रोध
क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
आग विनाश का प्रतिरूप जब धरती है
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।
कुसुम कोठारी।
बहुत ही बेहतरीन क्षणिकाएं कुसुम जी
ReplyDeleteढेर सा आभार सखी आपका स्नेह अतुल्य है।
Deletebehtarin ji
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत सा आभार. मै अवश्य आने में प्रयास रत रहूंगी।
Deleteक्या कहने सखी ....शानदार भाव मन को छू गये ...लाजवाब लेखन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती सी ।
Deleteअरे वाहहह दी...एक से बढ़कर एक सुंदर क्षणिकायें हैं...। गहन अर्थ समेटे हुये बेहद लाज़वाब...👌👌
ReplyDeleteक्रोध
क्रोध क्या है एक सुलगती अगन है
आग विनाश का प्रतिरूप जब धरती है
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।
ये तो बेमिसाल है दी..।
सस्नेह आभार श्वेता, आपकी सराहना से मेरी रचना को आयाम मिले।
Deleteसदा स्नेह क साथ।
बेहतरीन क्षणिकाएं 👌
ReplyDeleteजी तहेदिल से शुक्रिया अनिता जी
Deleteस्नेह बनाये रखें।
लाजवाब क्षणिकाएं...
ReplyDeleteवाह!!!
सस्नेह आभार सुधा जी ।
Deleteभंवर उसी पानी को अथक घुमाता है
ReplyDeleteमन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।
बिल्कुल ज्ञान गंगा है
मन का द्वन्द कई बार अहंकार जगाता है जो क्रोध बढ़ा देता है ...
ReplyDeleteतीनों जबरदस्त ...
वाह आपने तीनों क्षणिकाओं के अंतर निहित भावों में जो सम्बन्ध है जो एक दुसरे की पूरक अवस्थाऐं हैं उन्हें कितने कम शब्दों में साफ साफ चित्रित किया सच, बेमिसाल।
ReplyDeleteसादर आभार इस अप्रतिम व्याख्या और सराहना के लिए।