ऐ चाँद तुम...
कभी किसी भाल पे
बिंदिया से चमकते हो ,
कभी घूंघट की आड़ से
झांकता गोरी का आनन ,
कभी विरहन के दुश्मन ,
कभी संदेश वाहक बनते हो।
क्या सब सच है
या है कवियों की कल्पना
विज्ञान तुम्हें न जाने
क्या क्या बताता है
विश्वास होता है
और नहीं भी।
क्योंकि कवि मन को
तुम्हारी आलोकित
मन को आह्लादित करने वाली
छवि बस भाती
भ्रम में रहना सुखद लगता
ऐ चांद मुझे तुम
मन भावन लगते।
तुम ही बताओ तुम क्या हो
सच कोई जादू का पिटारा
या फिर धुरी पर घुमता
एक नीरस सा उपग्रह बेजान।
ऐ चांद तुम.....
कुसुम कोठारी।
कभी किसी भाल पे
बिंदिया से चमकते हो ,
कभी घूंघट की आड़ से
झांकता गोरी का आनन ,
कभी विरहन के दुश्मन ,
कभी संदेश वाहक बनते हो।
क्या सब सच है
या है कवियों की कल्पना
विज्ञान तुम्हें न जाने
क्या क्या बताता है
विश्वास होता है
और नहीं भी।
क्योंकि कवि मन को
तुम्हारी आलोकित
मन को आह्लादित करने वाली
छवि बस भाती
भ्रम में रहना सुखद लगता
ऐ चांद मुझे तुम
मन भावन लगते।
तुम ही बताओ तुम क्या हो
सच कोई जादू का पिटारा
या फिर धुरी पर घुमता
एक नीरस सा उपग्रह बेजान।
ऐ चांद तुम.....
कुसुम कोठारी।
ऐ चाँद तुम...
ReplyDeleteकभी किसी भाल पे
बिंदिया से चमकते हो ,
कभी घुंघट की आड़ से
झांकता गोरी का आनन ,
कभी विरहन के दुश्मन ,
कभी संदेश वाहक बनते हो।
क्या सब सच है
या है कवियों की कल्पना वाह बहुत सुंदर रचना कुसुम जी
बहुत बहुत आभार सखी, आपका स्नेह अपरिमित है।
Deleteसखी बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआप की रचनामें प्रकृति प्रेम साफ झलकता है।
चाँद तो है ही खूबसूरत पर आप की रचना ने चाँद को भी चार चाँद लगा दिए।
बहुत खूब।
सस्नेह आभार सखी, आपकी प्रतिक्रिया ने साधारण से मेरे प्रयास को चार चाँद लगा दिये।
Deleteपुनः स्नेह
चाँद के कितने रूप हैं शायद ही किसी के हों ...
ReplyDeleteप्रेम, नेह, स्नेह तो कभी मामा तो कभी ... प्रेम, विरह का प्रतीक ...
बहुत ही सुन्दर रचना में बाँधने का प्रयास है आपकी रचना ...
आपकी सराहना सदा रचना आधार देती है, सादर आभार दिगम्बर जी।
Deleteशुभ प्रभात सखी
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेखनी है आपकी
सखी आपका स्नेह है, स्नेह भरा आभार।
Deleteये चाँद ही तो कोई दीवाना हैं
ReplyDeleteजो हज़ारो सालो से कवियों दीवानो की उपमाओ मैं रोशन हैं
अच्छी लाइन्स लगी ये चाँद पर आपकी
कभी घूंघट की आड़ से
झांकता गोरी का आनन ,
कभी विरहन के दुश्मन ,
कभी संदेश वाहक बनते हो
जी सही कहा आपने चाँद सदियों से कवियों की पसंद है,
Deleteसादर आभार।
जी सादर आभार मैं अवश्य आऊंगी।
ReplyDeleteजी आभार आपका।
ReplyDeleteचांद ने कितनी ही कल्पनाओं को जन्म दिया है ! कवियों का बड़ा ही प्रिय विषय रहा है ! चाँद को लेकर बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय, आपकी सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteतुम ही बताओ तुम क्या हो
ReplyDeleteसच कोई जादू का पिटारा
या फिर धुरी पर घुमता
एक नीरस सा उपग्रह बेजान।
ऐ चांद तुम.....
चाँद की सुन्दर छवि की बहुत ही खूबसूरती से रचना...
सस्नेह आभार सुधा जी,चांद स्वयं इतना सुंदर है कि उस का वर्णन अगर सुंदर जान पडे तो रचना सार्थक हुई समझूं
Deleteकुसुम दी, चांद की सुंदरता को बहुत ही खुबसुरती से व्यक्त किया हैं आपने।
ReplyDeleteप्रिय ज्योति जी बहुत सा स्नेह आभार आभार।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से रचना को मान मिला बहन ।
चाँद तो चाँद है..प्रकृति संगीत की शीतल फुहार,निशा के आँगन मेघ मल्हार रसकी बूँदे छलकाती मदमाती समीर बयार....।
ReplyDeleteदी, क्या कहे शब्द नहींं...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...👌👌
वाह श्वेता आपने तो रचना से ज्यादा सुंदर भाव लिख रचना को और आगे बढाया सस्नेह आभार।
Deleteबहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसादर आभार लोकेश जी।
Deleteआपने चांद रात आने से पहले ही चांद का मान बढ़ा दिया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
मुदित मन से स्नेह आभार व्यक्त करती हूं आपको प्रतिक्रिया के साथ ब्लाॅग पर देख बहुत खुशी हुई।
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