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Tuesday, 25 September 2018

ऐ चाँद तुम क्या हो

ऐ चाँद तुम...
कभी किसी भाल पे
बिंदिया से चमकते हो ,
कभी घूंघट की आड़ से
झांकता गोरी का आनन ,
कभी विरहन के दुश्मन ,
कभी संदेश वाहक बनते हो।
क्या सब सच है
या है कवियों की कल्पना
विज्ञान तुम्हें न जाने
क्या क्या बताता है
विश्वास होता है
और नहीं भी।
क्योंकि कवि मन को 
तुम्हारी आलोकित
मन को आह्लादित करने वाली
छवि बस भाती
भ्रम में रहना सुखद लगता
ऐ चांद मुझे तुम
मन भावन लगते।
तुम ही बताओ तुम क्या हो
सच कोई जादू का पिटारा
या फिर धुरी पर घुमता
एक नीरस सा उपग्रह बेजान।
ऐ चांद तुम.....

          कुसुम कोठारी।

24 comments:

  1. ऐ चाँद तुम...
    कभी किसी भाल पे
    बिंदिया से चमकते हो ,
    कभी घुंघट की आड़ से
    झांकता गोरी का आनन ,
    कभी विरहन के दुश्मन ,
    कभी संदेश वाहक बनते हो।
    क्या सब सच है
    या है कवियों की कल्पना वाह बहुत सुंदर रचना कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार सखी, आपका स्नेह अपरिमित है।

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  2. सखी बहुत सुन्दर रचना।
    आप की रचनामें प्रकृति प्रेम साफ झलकता है।
    चाँद तो है ही खूबसूरत पर आप की रचना ने चाँद को भी चार चाँद लगा दिए।
    बहुत खूब।

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    1. सस्नेह आभार सखी, आपकी प्रतिक्रिया ने साधारण से मेरे प्रयास को चार चाँद लगा दिये।
      पुनः स्नेह

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  3. चाँद के कितने रूप हैं शायद ही किसी के हों ...
    प्रेम, नेह, स्नेह तो कभी मामा तो कभी ... प्रेम, विरह का प्रतीक ...
    बहुत ही सुन्दर रचना में बाँधने का प्रयास है आपकी रचना ...

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    1. आपकी सराहना सदा रचना आधार देती है, सादर आभार दिगम्बर जी।

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  4. शुभ प्रभात सखी
    बहुत ही उम्दा लेखनी है आपकी

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    1. सखी आपका स्नेह है, स्नेह भरा आभार।

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  5. ये चाँद ही तो कोई दीवाना हैं

    जो हज़ारो सालो से कवियों दीवानो की उपमाओ मैं रोशन हैं

    अच्छी लाइन्स लगी ये चाँद पर आपकी


    कभी घूंघट की आड़ से
    झांकता गोरी का आनन ,
    कभी विरहन के दुश्मन ,
    कभी संदेश वाहक बनते हो

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    1. जी सही कहा आपने चाँद सदियों से कवियों की पसंद है,
      सादर आभार।

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  6. जी सादर आभार मैं अवश्य आऊंगी।

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  7. चांद ने कितनी ही कल्पनाओं को जन्म दिया है ! कवियों का बड़ा ही प्रिय विषय रहा है ! चाँद को लेकर बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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    1. सादर आभार आदरणीय, आपकी सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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  8. तुम ही बताओ तुम क्या हो
    सच कोई जादू का पिटारा
    या फिर धुरी पर घुमता
    एक नीरस सा उपग्रह बेजान।
    ऐ चांद तुम.....
    चाँद की सुन्दर छवि की बहुत ही खूबसूरती से रचना...

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    1. सस्नेह आभार सुधा जी,चांद स्वयं इतना सुंदर है कि उस का वर्णन अगर सुंदर जान पडे तो रचना सार्थक हुई समझूं

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  9. कुसुम दी, चांद की सुंदरता को बहुत ही खुबसुरती से व्यक्त किया हैं आपने।

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    1. प्रिय ज्योति जी बहुत सा स्नेह आभार आभार।
      आपकी प्रतिक्रिया से रचना को मान मिला बहन ।

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  10. चाँद तो चाँद है..प्रकृति संगीत की शीतल फुहार,निशा के आँगन मेघ मल्हार रसकी बूँदे छलकाती मदमाती समीर बयार....।


    दी, क्या कहे शब्द नहींं...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...👌👌

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    1. वाह श्वेता आपने तो रचना से ज्यादा सुंदर भाव लिख रचना को और आगे बढाया सस्नेह आभार।

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  11. बहुत ही खूबसूरत रचना

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  12. आपने चांद रात आने से पहले ही चांद का मान बढ़ा दिया।
    बहुत सुंदर।

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  13. मुदित मन से स्नेह आभार व्यक्त करती हूं आपको प्रतिक्रिया के साथ ब्लाॅग पर देख बहुत खुशी हुई।

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