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Thursday, 20 September 2018

तृष्णा मोह राग की जाई

तृष्णा मोह राग की जाई

कैसा तृष्णा घट भरा भरा
बस बूंद - बूंद छलकाता है
तृषा, प्यास जीवन छल है
क्षण -क्षण छलता जाता है ।

अदम्य पिपासा अंतर तक
गहरे - गहरे उतरी जाती है
कैसे - कैसे सपने दिखाती
हुई पूर्ण ,नया भरमाती  है ।

कृत्य, अकृत्य भी करवाती
जीवन मूल्यों से भी गिराती
द्वेष, ईर्ष्या की है ये सहोदरा
मन से उच्च भाव भुलवाती ।

तृष्णा मोह और राग की जाई
जिसने विजय है इस पर पाई
निज स्वरुप को ऐसा  समझा
हाथ कूंची मोक्ष द्वार की आई।

          कुसुम कोठारी

17 comments:

  1. कैसा तृष्णा घट भरा भरा
    बस बूंद - बूंद छलकाता है
    तृषा, प्यास जीवन छल है
    क्षण -क्षण छलता जाता है ।
    बहुत सुंदर रचना कुसुम जी

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  2. अति सुन्दर ..सत्संग सी रचना मीता ...नमन

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    1. भावों की गहराई में जाने का आभार मीता।

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  3. तृष्णा मोह और राग की जाई
    जिसने विजय है इस पर पाई
    निज स्वरुप को ऐसा समझा
    हाथ कूंची मोक्ष द्वार की आई।

    सच्ची बात सटीक शब्दों में।

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    1. जी सादर आभार रोहितास जी
      आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।

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  4. वाह सखी
    बहुत ही सुन्दर रचना 👌👌👌

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    1. सखी आभार आपका सदा उत्साहित करने का।

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  5. तृष्णा मोह और राग की जाई
    जिसने विजय है इस पर पाई
    निज स्वरुप को ऐसा समझा
    हाथ कूंची मोक्ष द्वार की आई।

    सुंदर रचना दी जी। बहूत ख़ूब।

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    1. बहुत सा आभार भाई ।
      जय जिनेंद्र ।
      आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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  6. कृत्य, अकृत्य भी करवाती
    जीवन मूल्यों से भी गिराती
    द्वेष, ईर्ष्या की है ये सहोदरा
    मन से उच्च भाव भुलवाती ।
    तृष्णा मोह राग की जायी...वाह!!!
    क्या बात.....बहुत लाजवाब... बहुत शानदार भावाभिव्यक्ति..

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    1. सस्नेह आभार सुधा जी आपकी भाव विहल अभिव्यक्ति उर्जा भर गई लेखनी में।

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  7. बेहतरीन रचना सखी 👌

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  8. स्नेह आभार, मै अवश्य आ रही हूं।

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  9. अदम्य पिपासा अंतर तक
    गहरे - गहरे उतरी जाती है
    कैसे - कैसे सपने दिखाती
    हुई पूर्ण ,नया भरमाती है ।
    बहुत ही लाजवाब प्रिय कुसुम बहन !!
    तृष्णा को संत महात्माओं की तरह बहुत ही थोड़े शब्दों में ज्यों का त्यों लिख दिया | ये तृष्णा अपने -अलग - अलग रूपों में आजीवन भरमाती है | हद से ज्यादा बढ़ जाये तो रोग सरीखी हो जाती है | सार्थक रचना के लिए सस्नेह बधाई बहन |

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  10. सस्नेह आभार रेनू बहन, सच आपकी प्रतिक्रिया की कायल हूं मैं, सदा इंतजार रहता है आपकी प्रतिक्रिया का,, और मिलते ही रचना खुद को ही मूल्यवान जान पडती है। सदा अनुराग बरसाते रहें।
    सस्नेह।

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