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Saturday, 15 September 2018

पिता सुधा स्रोत

पिता छांव दार तरुवर, नीर सरोवर

देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरुवर
अब छांव कहां से पाऊं

देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हे नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं ।

देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हे नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं ।

देकर मुझको आधार महल
कहां गये हे धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं ।

देकर मुझ को जीवन
कहां गये हे सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।

          कुसुम कोठरी।

24 comments:


  1. देकर मुझको शीतल नीर
    कहां गये हे नीर सरोवर
    अब अमृत कहां से पाऊं । पिता बच्चों के आधार स्तंभ होते है पिता को समर्पित आपकी यह रचना बेहद हृदयस्पर्शी है

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    1. सही कहा सखी आपने पिता आधार स्तंभ होते हैं, सस्नेह आभार।

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  2. देकर मुझ को छांव घनेरी
    कहां गये तुम हे तरुवर
    अब छांव कहां से पाऊं

    देकर मुझको शीतल नीर
    कहां गये हे नीर सरोवर
    अब अमृत कहां से पाऊं बहुब ही सुन्दर और भावपूर्ण

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    1. जी अभिलाषा जी सस्नेह आभार आपका रचना को समर्थन देने हेतु।

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  3. रिय कुसुम बहन -- पिता जैसी छाया जीवन में और कहाँ ? अंतस की वेदना का ज्वार इन मर्मान्तक शब्दों में मुखर हुआ हुआ हैं जो बहुत ही भावुक करने वाला है | इसे वही समझ सकता है जो इस छाया से वंचित हो इस पीड़ा से गुजरा हो |
    देकर मुझ को जीवन
    कहां गये हे सुधा स्रोत
    अब हरितिमा कहां से पाऊं।?
    सचमुच वो हरीतिमा जब छिन जाती है वो कहीं नहीं मिलती | उसका कोई विकल्प जो नहीं दुनिया में !!!!

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    1. रेणू बहन आपकी विचारात्मक प्रतिक्रिया सदा रचना को प्रवाह देती है और रचनाकार का उत्साह वर्धन करती है उस पर आपकी स्वयं की अभिव्यक्ति सदा गहरी और मन मोहक होती है, सही है कहा आपने अंतस की वेदना के मर्मांतक स्वर!
      सस्नेह आभार बहन ।

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  4. अप्रतिम अप्रतिम अप्रतिम मीता ...निशब्द हूँ ..
    हर शब्द मेरे हिय से निकाल कर
    शब्द शब्द जैसे उकेर दिया
    बन्द किवडिया खोल उड़ा दिये
    भावों के पंछी सब फर फर !
    नमन नमन मीता ...
    काव्य नहीं मेरा ह्रदय स्पंदन है .मेरे बाबूजी ..

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    1. जी सही कहा मीता ये तेरी मेरी कहानी नही है ये एक भोगा हुवा अतीत है जो सदा एक कसक बन मन मै बैठा है ।
      सस्नेह आभार

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  5. वाह सखी !!! बहुत लाजवाब 👌👌👌
    दिल को छू गई यह रचना

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    1. बहुत बहुत आभार सखी निशब्द हूं।

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 18 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार सर मै काफी दिन बाद प्रतिक्रिया ले कर आई हूं, पर ये मेरे हृदय के पास की रचना है,इसे पांच लिंकों मै देख मुझे कितनी खुशी हुई मै नही बता सकती, तहे दिल से शुक्रिया ।
      सादर ।

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  7. जी दी..पिता के प्रति भाव की अभिव्यक्ति सदैव मन विहृवल कर जाती है।
    भावपूर्ण हृदयस्पर्शी रचना दी...सुंदर👌

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    1. सस्नेह आभार श्वेता, बरसों से ऐसे उद्गगार कहीं अंतर में घुमडते रहे कभी अभिव्यक्त नही कर पाई पर साल भर पहले पिता को समर्पित एक रचना पढते ही ये उद्गार स्वतः ही पन्नो पर आ गये पर प्रेसित करने में भी साल भर लग गया आप को अच्छी लगी और सच हृदय को छू गई तो मेरे उद्गार सार्थक हुऐ ।

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  8. पिता के प्रति भाव अव्यक्त ही रह जाते हैं अक्सर.... आपने अपनी कविता में उन अव्यक्त भावों का हृदयस्पर्शी अंकन किया है।

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    1. जी मीना जी सही कहा आपने ये अव्यक्त से भाव व्यक्त होने तक काफी लम्बे समय तक कहीं पन्नो में दबे रहे। आपको छू गये तो सच कहूं लिखना सार्थक हुवा। सस्नेह आभार ।

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  9. पिता छाँव दार तरुवर ,नीर सरोवर....
    बहुत सुन्दर ...बहुत हृदयस्पर्शी...
    वाह!!!

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    1. सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  10. पिता सा बरगद कौन कहाँ ...
    सच है जो समय, सुकून उनके होते होता है वो लौट के नहीं आता ...
    दिल को छूते हुए निर्मल शब्दों का ताना बाना ... सुन्दर रचना ...

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    1. सादर आभार आदरणीय दिगम्बर जी, सत्य ही है कहां है ऐसी पुर सुकून छांव और छत जैसी पिता के साये में है।
      आपकी प्रतिक्रिया से रचना का मान बढ गया ।
      पुनः आभार।

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