ऐ दिल क्यों लौट के, फिर वहीं आता है।
क्या खोया इन राहों मे,
जो ढूंढ नही पाता है,
सूना मन का कोई कोना
खुद भी देख नही पाता है।
ऐ दिल क्यों लौट के....
हर लम्हे की कोई,
पहचान नही होती
फिर भी गुजरा लम्हा
बीत नही पाता है ।
ऐ दिल क्यों लौट के....
कौन सा अनुराग है ये
या कोइ मृगतृष्ना
भटके मन को कैसे
उन राहों से लाऊं ।
ऐ दिल क्यों लौट के....
कुसुम कोठारी ।
क्या खोया इन राहों मे,
जो ढूंढ नही पाता है,
सूना मन का कोई कोना
खुद भी देख नही पाता है।
ऐ दिल क्यों लौट के....
हर लम्हे की कोई,
पहचान नही होती
फिर भी गुजरा लम्हा
बीत नही पाता है ।
ऐ दिल क्यों लौट के....
कौन सा अनुराग है ये
या कोइ मृगतृष्ना
भटके मन को कैसे
उन राहों से लाऊं ।
ऐ दिल क्यों लौट के....
कुसुम कोठारी ।
बहुत सुंदर रचना कुसुम जी
ReplyDeleteजी अनुराधा जी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा मन को मोह लेती है।
Deleteकौन सा अनुराग है ये
ReplyDeleteया कोइ मृगतृष्ना
भटके मन को कैसे
उन राहों से लाऊं ।
बहुत बहुत सुंदर कुसुम जी।
इस तृष्णा से कैसे उबर पाए यही तो सबके हृदय का प्रश्न हैं।लाज़वाब रचना
जी बहुत सा आभार आदरणीय आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteमन है ये ... बीते में ही रहना चाहता है ... उसकी यादों में जीना चाहता है ... वहीं लौट के आता है ... अतीत में जीती सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteजी सादर आभार दिगम्बर जी आपकी प्रतिक्रिया से सदा उत्साह वर्धन होता है ।
Deleteआफरीन मीता ...
ReplyDeleteमन की अनकही व्यथा
सगरी ही कह डाली
पुनि पुनि वही बैठना चाहे
बैठा था जिस डाली !
बहुत सा आभार मीता, सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया मन को और उत्साहित करती है सदा
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार प्रशांत जी
Deleteसुन्दर.... शानदार रचना 👌👌👌
ReplyDeleteसखी आभार घनेरा।
Deleteअद्भुत रचना।
ReplyDeleteक्या रचतीं हैं आप। 👌
जी अनुग्रहित हुई मैं सादर आभार।
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