मेरी दस सुक्तियाँ
1आँसू और पसीना दोनों काया के विसर्जन है,एक दुर्बलता की निशानी दूसरा कर्म वीरों का अमृत्व।
2 सफलता उन्हीं के कदम चूमती है जो समय को साध कर चलते हैं।
3 पहली हार कभी भी अंत नहीं शुरुआत है जीत के लिए अदम्य।
4 भाग्य को बदलना है तो स्वयं जुट जाओ।
5 हारता वहीं है जो दौड़ में शामिल हैं,बैठे रहने वाले बस बातें बनाते हैं।
6 सिर्फ पर्वत पर चढ़ जाना ही सफलता नहीं है, पथ के निर्माता भी विजेता होते हैं।
7 पथ के दावेदार नहीं पथ के पथिक बनों मंजिल तक वहीं पहुंचाती है।
8 लीक-लीक चलने वाले कब नई राह बनाते हैं।
9 पुराने खंडहरों पर नये भवन नहीं बनते,नये निर्माण के लिए सुदृढ़ नींव बनानी होती है, चुनौती की ईंट ईंट चुननी होती है।
10 किशोरों का पथ प्रर्दशन करो, उनपर बलात कुछ भी थोपने से वो आप से ज्यादा कभी भी नहीं सीख पायेंगे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२६-०९ -२०२२ ) को 'तू हमेशा दिल में रहती है'(चर्चा-अंक -४५६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !! प्रत्येक सूक्ति में जीवन की सफलता का सार निहित हैं । लाजवाब एवं प्रेरक सृजन कुसुम जी!
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सटीक सूक्तियाँ। प्रेरणादायक, जीवन की सफलता की सूचक
ReplyDeleteवाह कुसुम जी ! इन सूक्तियों में आपने जीवन का सार समेट दिया !
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