हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷🌷
हिन्दी क्यों पराई
चाट रही है खोद नींव को
परदेशी दीमक ये द्वार।
मधु प्याला ही सबसे प्यारा
गंगाजल लगता है खार।
घर की बेटी हुई पराई
दत्तक पर उमड़ा है नेह
आज निवासी बने प्रवासी
छोड़ छाड़ सब अपना गेह
मैया सुबके है कौने में
मेम सँभाले घर का भार।।
यथाचार में हिन्दी रोती
हर साधक भी चाहे नाम
मातृ भाष का नारा गूंजे
दिन दो दिन का ही बस काम
परिपाटी ही रहे निभाते
कैसे हो फिर बेड़ा पार।।
शिक्षा आंग्ल वीथिका रमती
घर की मुर्गी लगती दाल
भाष विदेशी प्यारी लगती
पढ़कर बदली सबकी चाल
हिन्दी के अन्तस् को फूँके
यौतुक सी ज्वाला हर बार।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
राम राम सा, हिंदी दिवस की आपको भी शुभकामनायें कुसुम जी, बहुत खूब ही लिखा कि शिक्षा आंग्ल वीथिका रमती
ReplyDeleteघर की मुर्गी लगती दाल
भाष विदेशी प्यारी लगती
पढ़कर बदली सबकी चाल....वाह
राम राम सा घणी खम्मा।
Deleteआपकी प्यारी सी टिप्पणी से अन्यों पर मुस्कान आ गई अलकनंदा जी।
हृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा मंच - 4552 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हृदय से आभार आपका आदरणीय मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
घर की बेटी हुई पराई
ReplyDeleteदत्तक पर उमड़ा है नेह
आज निवासी बने प्रवासी
छोड़ छाड़ सब अपना गेह
मैया सुबके है कौने में
मेम सँभाले घर का भार।।
हिन्दी का निरादर करने वाले पर करारा व्यंग
लाजवाब सृजन कुसुम जी
आपकों भी हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई 🙏
हृदय से आभार आपका कामिनी जी रचना को समर्थन देती सारगर्भित टिप्पणी से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह।
कटु सत्य !! पर हिंदी इतनी सशक्त है कि अपना स्थान बना ही लेगी
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अनिता जी।
Deleteहिन्दी के लिए आपका यह आशावादी रवैया अच्छा लगा।
सस्नेह।
बहुत सही लिखा है। इसे तथ्य कहिए या व्यंग ... दोनों सही फबते हैं इसपर। ़बधाई।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका ।
ReplyDeleteरचना पर सटीक प्रतिक्रिया से लेखन मुखरित हुआ।
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
यथार्थ चित्रण किया है। आशा तो यही है कि चित्र अवश्य बहुरेगा।
ReplyDeleteयथाचार में हिन्दी रोती
ReplyDeleteहर साधक भी चाहे नाम
मातृ भाष का नारा गूंजे
दिन दो दिन का ही बस काम
परिपाटी ही रहे निभाते
कैसे हो फिर बेड़ा पार।।
वाह!!!!
सटीक एवं सार्थक
अद्भुत व्यंग
बहुत ही लाजवाब ।