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Friday, 16 September 2022

वृद्ध वय ढलता सूर्य


 वृद्ध वय ढलता सूर्य


पर्यटन अवसान को जब

है अभिज्ञा अब स्वता से

क्लांत हो मनसा भटकती

दूर होकर तत्वता से।


प्रोढ़ होता मन सुने अब

क्षीण से तन की कहानी 

सोच पर तन्द्रा चढ़ी है

गात पतझर सा सहानी

रीत लट बन श्वेत वर्णी

झर रही परिपक्वता से।


खड़खड़ाती जिर्ण श्वासें

देह लिपटी कब रहेगी

तोड़ बंधन चल पड़ी तो

शून्य में जाकर बहेगी

कौन घर होगा ठिकाना

बैठ सोचे ह्रस्वता से।।


ताप ढलता सूर्य गुमसुम

ओट जैसे खोजता है

चैन फिर भी न मिलता

सुस्त बाहें खोलता है

थाम ने कोना क्षितिज का

मिचमिचाता अल्पता से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

8 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-9-22} को विश्वकर्मा भगवान का वंदन" (चर्चा अंक 4555) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. सुंदर बिंबों से सजी , उत्तम शब्दावली से युक्त बेहतरीन रचना सखी सादर

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. विम्बो और अभिव्यजनाओं का सुंदर समिश्रण! हार्दिक साधुवाद!

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  5. अति मुग्धकर कृति। सूर्य के परिवर्तित छवियों की निराली छटा। अति सुन्दर।

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  6. प्रोढ़ होता मन सुने अब

    क्षीण से तन की कहानी

    सोच पर तन्द्रा चढ़ी है

    गात पतझर सा सहानी
    अवसान की बेला का (जीवन का या सूर्य) का ))बहुत ही लाजवाब शब्दचित्रण...
    वाह!!!

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