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Wednesday, 9 June 2021

लो आया नया विहान


 लो आया नया विहान ।


प्रकृति लिये खड़ी कितने उपहार, 

चाहो तो समेट लो अपनी झोली में,

अँखिंयों की पलकों में ,

दिल की कोर में ,साँसों की सरगम में ।

लो आया नया विहान।।


देखो उषा की सुनहरी लाली कितनी मन भावन ,

उगता सूरज ,ओस की शीतलता

पंक्षियों की चहक ,फूलों की महक,

भर लो अंतर तक ,कलियों की चटक ।

लो आया नया विहान।।


कोयल की कुहूक मानो कानो में मिश्री घोलती ,

भँवरे की गुँजार ,नदियों की कल-कल,

सागर में प्रभंजन ,लहरों की प्रतिबद्धता ,

जो कर्म का पाठ पढाती बंधन में रह के भी ।

लो आया नया विहान।।


झरनों का राग,पहाड़ों की अचल दृढ़ता ,

सुरमई साँझ का लयबद्ध संगीत ,

नीड़ को लौटते विहंग ,अस्त होता भानु ,

निशा के दामन का अँधेरा कहता।

लो आया नया विहान।।


गगन में इठलाते मंयक की उजास भरती रोशनी ,

किरणों का चपलता से बिखरना ,

तारों की टिम-टिम ,दूर धरती गगन का मिलना,

बादलों की हवा में उडती डोलियाँ ।

लो आया नया विहान।।


बरसता सावन , मेघों का घुमड़ना, 

तितलियों की अपरिमित सुंदरता, 

न जाने क्या-क्या जिनका कोई मूल्य नही चुकाना, 

पर जो अनमोल भी है अभिराम भी ।।

लो आया नया विहान ।।


            कुसुम कोठारी  'प्रज्ञा'

26 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      पाँच लिकों पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  3. प्रकृति के खूबसूरत प्रतिबिंबों को परिभाषित करती रचना का एक एक शब्द बहुत ही सुंदरता से अपने सजाया है,उत्कृष्ट सृजन ।

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    1. आपकी सुंदर सार्थक टिप्पणी से सदा लेखन को नव उर्जा मिलती है जिज्ञासा जी ।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  4. बरसता सावन , मेघों का घुमड़ना,

    तितलियों की अपरिमित सुंदरता,

    न जाने क्या-क्या जिनका कोई मूल्य नही चुकाना,

    पर जो अनमोल भी है अभिराम भी ।।

    लो आया नया विहान ।।---सुंदर सृजन।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  5. प्रकृति अंगों का सुघट वर्णन

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका , सार्थक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाह मान हुई ।
      सादर।

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  6. कुदरत के साथ जीने का तरीक़ा जिसने सीख लिया वह सदा आनंद में है, क्योंकि कुदरत कभी पुरानी नहीं होती, नित नवीन होती है

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी, सही कहा आपने प्रकृति के सान्निध्य में उत्कृष्ट सुख है बस महसूस करना होता है ।
      सस्नेह।

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  7. सुन्दर भाव पूर्ण रचना!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  8. सुन्दर भावपूर्ण गीत ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका दी बस ऐसे ही आशीर्वाद मिलता रहे ।
      सादर।

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  9. बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ओंकार जी , उत्साह वर्धन हुआ।सादर।

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  10. प्रकृति सुन्दरी जाने कितने रूप में हमारे सामने आती है
    बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कविता जी, आपकी स्नेहिल उपस्थिति लेखन में नव उर्जा भर रही है, सादर सस्नेह।

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  11. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  12. प्रकृति के अनेक रँगों को संत लिया ... हर रँग लाजवाब है ...
    नए विहान का स्वागत है ...

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  13. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना के भाव मुखरित हुए, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
    सादर।

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  14. उषा की सुनहरी लाली से लेकर सुरमई साँझ तक...लो आया विहान...प्रकृति के लाजवाब विम्ब...।
    बहुत ही मनमोहक शानदार सृजन
    वाह!!!

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  15. नए विहान का सुंदर शब्द चित्रण ।
    प्रातः से संध्या तक जहां तक नज़र गयी सबको समेट लिया आपने । सुंदर सृजन

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