लो आया नया विहान ।
प्रकृति लिये खड़ी कितने उपहार,
चाहो तो समेट लो अपनी झोली में,
अँखिंयों की पलकों में ,
दिल की कोर में ,साँसों की सरगम में ।
लो आया नया विहान।।
देखो उषा की सुनहरी लाली कितनी मन भावन ,
उगता सूरज ,ओस की शीतलता
पंक्षियों की चहक ,फूलों की महक,
भर लो अंतर तक ,कलियों की चटक ।
लो आया नया विहान।।
कोयल की कुहूक मानो कानो में मिश्री घोलती ,
भँवरे की गुँजार ,नदियों की कल-कल,
सागर में प्रभंजन ,लहरों की प्रतिबद्धता ,
जो कर्म का पाठ पढाती बंधन में रह के भी ।
लो आया नया विहान।।
झरनों का राग,पहाड़ों की अचल दृढ़ता ,
सुरमई साँझ का लयबद्ध संगीत ,
नीड़ को लौटते विहंग ,अस्त होता भानु ,
निशा के दामन का अँधेरा कहता।
लो आया नया विहान।।
गगन में इठलाते मंयक की उजास भरती रोशनी ,
किरणों का चपलता से बिखरना ,
तारों की टिम-टिम ,दूर धरती गगन का मिलना,
बादलों की हवा में उडती डोलियाँ ।
लो आया नया विहान।।
बरसता सावन , मेघों का घुमड़ना,
तितलियों की अपरिमित सुंदरता,
न जाने क्या-क्या जिनका कोई मूल्य नही चुकाना,
पर जो अनमोल भी है अभिराम भी ।।
लो आया नया विहान ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुंदर।♥️
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteपाँच लिकों पर रचना को शामिल करने के लिए।
मैं उपस्थित रहूंगी।
सादर।
प्रकृति के खूबसूरत प्रतिबिंबों को परिभाषित करती रचना का एक एक शब्द बहुत ही सुंदरता से अपने सजाया है,उत्कृष्ट सृजन ।
ReplyDeleteआपकी सुंदर सार्थक टिप्पणी से सदा लेखन को नव उर्जा मिलती है जिज्ञासा जी ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सस्नेह।
बरसता सावन , मेघों का घुमड़ना,
ReplyDeleteतितलियों की अपरिमित सुंदरता,
न जाने क्या-क्या जिनका कोई मूल्य नही चुकाना,
पर जो अनमोल भी है अभिराम भी ।।
लो आया नया विहान ।।---सुंदर सृजन।
बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
प्रकृति अंगों का सुघट वर्णन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका , सार्थक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाह मान हुई ।
Deleteसादर।
कुदरत के साथ जीने का तरीक़ा जिसने सीख लिया वह सदा आनंद में है, क्योंकि कुदरत कभी पुरानी नहीं होती, नित नवीन होती है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनिता जी, सही कहा आपने प्रकृति के सान्निध्य में उत्कृष्ट सुख है बस महसूस करना होता है ।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर भाव पूर्ण रचना!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
सुन्दर भावपूर्ण गीत ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका दी बस ऐसे ही आशीर्वाद मिलता रहे ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ओंकार जी , उत्साह वर्धन हुआ।सादर।
Deleteप्रकृति सुन्दरी जाने कितने रूप में हमारे सामने आती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत बहुत आभार आपका कविता जी, आपकी स्नेहिल उपस्थिति लेखन में नव उर्जा भर रही है, सादर सस्नेह।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
प्रकृति के अनेक रँगों को संत लिया ... हर रँग लाजवाब है ...
ReplyDeleteनए विहान का स्वागत है ...
बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना के भाव मुखरित हुए, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
ReplyDeleteसादर।
उषा की सुनहरी लाली से लेकर सुरमई साँझ तक...लो आया विहान...प्रकृति के लाजवाब विम्ब...।
ReplyDeleteबहुत ही मनमोहक शानदार सृजन
वाह!!!
नए विहान का सुंदर शब्द चित्रण ।
ReplyDeleteप्रातः से संध्या तक जहां तक नज़र गयी सबको समेट लिया आपने । सुंदर सृजन