विधा- किरीट सवैया
शिल्प विधान :-12,12 वर्णों पर यती ,मापनी 211 211 211 211, 211 211 211 211
१) जग भंगुर
ये जग भंगुर जान अरे मनु, नित्य जपो सुख नाम निरंजन।
नाम जपे भव बंधन खंडित, दूर हटे चहुँ ओर प्रभंजन।
अंतस को रख स्वच्छ अरे नर, शुद्ध करें शुभता मन मंजन।।
उत्तम भाव भरे नित पावन, सुंदर प्रेषित हो अभिव्यंजन।।
२)सावन
मंजुल रूप अनूप रचे महि, मोहित देख छटा अब सावन।
बाग तड़ाग सभी जल पूरित, पावस आज सखी मन भावन।
मंगल है शिव नाम जपो शुभ, मास सुहावन है अति पावन ।
वारि चढ़े सब रोग मिटे फिर, साधु कहे तन दाहक धावन।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteचर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
किरीट सवैया पहली बार पढ़ा, चूंकि मैं साहित्य की विदयार्थी नहीं रही कभी सो आपके इस ब्लॉग से बहुत कुछ सीखती भी रहती हूं।
ReplyDeleteपंक्तियां जो मेरे दिल तक पहुंचीं कि
"अंतस को रख स्वच्छ अरे नर, शुद्ध करें शुभता मन मंजन।।
उत्तम भाव भरे नित पावन, सुंदर प्रेषित हो अभिव्यंजन।।"
बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी , आप साहित्य कार हैं या नहीं नहीं कह सकती पर आप एक अच्छी इंसान हैं एक अच्छी पाठक है, अच्छी टिप्पणी कार हैं ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सदा मन आह्लाद से भर उठता है,और मेरे ब्लाग से आप सीखती हैं ये कहना आप का बड़प्पन है।,
Deleteसदा ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर सवैया छंद कुसुम जी, बहुत शुभकामनाएं आपको।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया से सदैव मन को खुशी मिलती है ।
Deleteसस्नेह।
वाह…बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उषा जी , उत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
Deleteसस्नेह।
वाह!बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteचिंतन को समेटे कुछ मिट्टी की भीनी भीनी ख़ुशबू लिए।
सादर
सस्नेह आभार प्रिय अनिता, आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन को सदा उर्जा मिलती है और उत्साहवर्धन होता है।
Deleteसस्नेह।
अति सुन्दर । आध्यात्म भाव और प्रकृति के सौन्दर्य का अद्भुत संगम ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी, रचना में निहित भावों पर आपकी विहंगम दृष्टि ने रचना को गतिशील किया।
Deleteसस्नेह।
बेहद खूबसूरत सवैया छंद सखी।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
अंतस को रख स्वच्छ अरे नर, शुद्ध करें शुभता मन मंजन।।
ReplyDeleteउत्तम भाव भरे नित पावन, सुंदर प्रेषित हो अभिव्यंजन
बहुत ही लाजवाब किरीट सवैया छन्द।
वाह!!!
सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ, कलम उर्जावान हुई।
सस्नेह।
दोनो छंद लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचनाएँ ।
आपकी स्नेहिल उपस्थिति सदा मुझे नयी उर्जा से भर्ती हैं संगीता जी।
Deleteढेर सारा आभार आपका।
सस्नेह।
आपकी प्रतिभा असाधारण है कुसुम जी। आपकी प्रत्येक रचना आनंद के सागर में गोते लगवा देती है। प्रशंसा क्या की जाए? सूर्य को दीप क्या दिखाएं?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना। दोनों छंद बहुत बढ़िया। बधाई।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण छांदस सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया
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