कवि का मंथन
उकेर कविता पन्ने पर जब
मोती जैसे भाव जड़े
कितने तभी कलम के योद्धा
हाथ जोड़कर वहां खड़े।
निखरी निखरी लगती मुझको
नदियाँ निर्मल पानी हो
चित्रकार की रचना मनहर
रहा न जिसका सानी हो
लिखकर जिसको आत्मवंचना
आहा रचनाकार बड़े।।
गुरु हाथों जब हुआ गवेक्षण
पोल ढोल की दिखा गई
दर्पण जैसी प्रतिछाया में
शिल्प झोल सब सिखा गई
त्रस्त हुई चीत्कार करें फिर
कितने टुकड़े कटे पड़े।।
विनयवान साहित्य रचेगा
अभिमानी को ताव नहीं
रस अलंकार छंदों के बिन
कविता का कुछ भाव नही
मेधा और मनस मिल जाए
बने कल्पना पंख उड़े।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाह मान हुई।
Deleteसस्नेह।
विनयशीलता सिखाती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संगीता जी ।
Deleteसादर सस्नेह।
सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका ।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-06-2021को चर्चा – 4,105 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
विनयवान साहित्य रचेगा
ReplyDeleteअभिमानी को ताव नहीं
रस अलंकार छंदों के बिन
कविता का कुछ भाव नही
मेधा और मनस मिल जाए
बने कल्पना पंख उड़े।।
विनम्र दिल में ही संवेदना प्रस्फुटित होती हैऔर संवेदनशील हृदय में भाव....
वाह!!!
लाजवाब नवगीत।
नवगीत में निहित भावों पर आपकी विहंगम दृष्टि ने उसे नव उर्जा दी है सुधा जी, सदा आभारी रहूंगी, आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया सदा रचना को नये अर्थ देती है।
Deleteसस्नेह।
दर्पण जैसी प्रतिछाया में
ReplyDeleteशिल्प झोल सब सिखा गई
बहुत सुन्दर सृजन
बहुत बहुत आभार आपका, आपको पसंद आई रचना, लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन,सदा उत्साहवर्धन करती हैं आप।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सस्नेह।
कविता रचने का गुर सिखाती है आपकी यह रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका भावों को समर्थन मिला।
Deleteसस्नेह।
उकेर कविता पन्ने पर जब
ReplyDeleteमोती जैसे भाव जड़े
कितने तभी कलम के योद्धा
हाथ जोड़कर वहां खड़े।
बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी,सादर नमन आपको
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी, आपकी प्रतिक्रिया रचना में स्पंदन भर देती है।
Deleteसदा स्नेह पूरित टिप्पणी आपकी मन को हर्षित करती हैं।
सस्नेह।
वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी उत्साह वर्धन के लिए।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर कुसुम जी, गुरु हाथों जब हुआ गवेक्षण
ReplyDeleteपोल ढोल की दिखा गई
दर्पण जैसी प्रतिछाया में
शिल्प झोल सब सिखा गई
त्रस्त हुई चीत्कार करें फिर
कितने टुकड़े कटे पड़े।। महान कवि जयशंकरप्रसाद की भांति लेखन---वाह
बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी।
Deleteतौबा! प्रसाद जी का क्षणांश भी लिख दूं तो धन्य हो जाएगा लेखन और मैं ।
पर आपके स्नेह ने बांध लिया मुझे।
तहे दिल से शुक्रिया।
सस्नेह।
असल कद्र तो भावों की ही है ... अच्छे भाव हर किसी को अच्छे लगते हैं और मन को सुहाते हैं ...
ReplyDeleteआपका कहना सत्य है नासवा जी मैं भी भावों की कद्रदान हूं।
ReplyDeleteबस ये तो आप-बीती है, कभी कभी कुछ लिखकर स्वयं की रचना पर आत्ममुग्ध हो जाते हैं पर हम छंदों के नवांकुरों की वो ही रचना जब गुरुजी के पास पहुंचती हैं और उसमें जो झोल निकलते हैं तो सीधे उड़ते से धरातल पर होते हैं हम या मैं कहूँ तो ज्यादा बेहतर होगा।
बहुत बहुत आभार आपका,रचना को निरिक्षणात्मक दृष्टि से देखने के लिए।
सादर।
विनयवान साहित्य रचेगा
ReplyDeleteअभिमानी को ताव नहीं
रस अलंकार छंदों के बिन
कविता का कुछ भाव नही
मेधा और मनस मिल जाए
बने कल्पना पंख उड़े।।
... प्रासंगिक उल्लेख करती नायाब पंक्तियां,सुंदर सृजन, बहुत शुभकामनाएं कुसुम जी।