भाव पाखी
खोल दिया जब मन बंधन से
उड़े भाव पाखी बनके
बिन झाँझर ही झनकी पायल
ठहर-ठहर घुँघरू झनके।
व्योम खुला था ऊपर नीला
आँखों में सपने प्यारे
दो पंखों से नील नापलूँ
मेघ घटा के पट न्यारे
एक गवाक्ष खुला छोटा सा
टँगे हुए सुंदर मनके।।
अनुप वियदगंगा लहराती
रूपक ऋक्ष खिले पंकज
जैसे माँ के प्रिय आँचल में
खेल रहा है शिशु अंकज
बिखर रहा था स्वर्ण द्रव्य सा
बिछा है चँदोवा तनके।।
फिर घर को लौटा खग वापस
खिला-खिला उद्दीप्त भरा
और चहकने लगा मुदित मन
हर कोना था हरा-हरा
खिलखिल करके महक रहे थे
पात हरति हो उपवन के।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
कितनी प्यारी रचना । भाव पाखी उन्मुक्त गगन की सैर कर लौट कर कितने प्रसन्न लग रहे । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपको सृजन पसंद आया संगीता जी सच सृजन मुखरित हुआ।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा लेखन में नव उर्जा का संचार करती है।
ढेर सारा स्नेह आभार।
सस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-06-2021) को 'भाव पाखी'(चर्चा अंक- 4101) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
अनिता सुधीर
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए ,मैं चर्चा पर भ्रमण कर चुकी शानदार संकलन।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत बहुत सरस सराहनीय रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका रचना सार्थक हुई, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका विश्व मोहन जी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
प्रभावशाली सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteवाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय कुसुम दी।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसुंदर भावों वाली रचना.
ReplyDeleteमैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना
जी सादर आभार आपका।
Deleteआपका नया ब्लाग बहुत सार्थक विषय को लेकर है, ब्लाग ऊंचाईयों को छुए ,आपको उसकी सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
सादर।
अत्यंत सुंदर ...
ReplyDeleteअत्यंत कोमल रचना 🙏
बहुत बहुत आभार आपका शरद जी, आपकी प्रतिक्रिया से रचना को नव प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह।
बेहद प्यारी और मनमोहक सृजन कुसुम जी,सादर नमन आपको
ReplyDeleteढेर सारा आभार कामिनी जी, आपका स्नेह मुझे और रचना को सदा मिलता रहता है,ये मेरे लिए आह्लाद का विषय है।
Deleteसदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
बेहद खूबसूरत सृजन सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी, उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना सोमवार 21 जून 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी, पांच लिकों पर रचना का आना मेरे लिए सम्मान का विषय है ।
Deleteमैं चर्चा पर समय देकर आई हूं, असाधारण पोस्ट और शानदार प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बेहद भावपूर्ण और मन को सूकून देती रचना, बधाई.
ReplyDeleteमन हर्षित हुआ जेन्नी जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
व्योम खुला था ऊपर नीला
ReplyDeleteआँखों में सपने प्यारे
दो पंखों से नील नापलूँ
मेघ घटा के पट न्यारे
एक गवाक्ष खुला छोटा सा
टँगे हुए सुंदर मनके।।
...वाह कमाल की पंक्तियाँ, मन में कहीं गहरे उतर गईं,सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई।
जिज्ञासा जी हृदय तल से आभार आपका।
Deleteआपकी टिप्पणी सदा लेखन में और रचनाकार में आत्म संतुष्टि के भाव जगाते हैं।
प्रबुद्ध टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
आपकी लयबद्ध सारगर्भित समृद्ध शब्दावली से सुसज्जित रचना भाव से भर गयी दी।
ReplyDeleteआपकी प्रथम कृति से आजतक के रचनाओं के सफ़र में बहुत परिवर्तन हुए किंतु एक बात नहीं बदली दी आपकी रचनाओं में निहित संदेश और सकारात्मकता।
खूब लिखते रहे दी।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें।
सस्नेह प्रणाम।
सादर
आप को ब्लाग पर देख मन खुशी से भर गया प्रिय श्वेता।
Deleteआपकी शुभकामनाओं का हृदय तल से आभार।
रचनाकार को व्याख्यात्मक टिप्पणी से सदा ऊर्जा मिलती है ।
आपकी मोहक प्रतिपंक्तियाँ सदा दिल के पास से।
सस्नेह।
खोल दिया जब मन बंधन से
ReplyDeleteउड़े भाव पाखी बनके
बिन झाँझर ही झनकी पायल
ठहर-ठहर घुँघरू झनके।
मन बंधन मुक्त होते ही भावों का आसमान छूने लगता है...
आपके नवगीतों में भाव और बिम्ब दोनों ही असीम ऊँचाइयों पर होते हैं...।
लाजवाब सृजन।
सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका, रचनाकार को पाठक ही आयाम देता है, आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों से सराहना पाकर मन आत्म संतुष्टि से तो भरता ही है साथ ही कलम भी ऊर्जावान हो उठती है।
Deleteपुनः स्नेहिल आभार।
व्योम खुला था ऊपर नीला
ReplyDeleteआँखों में सपने प्यारे
दो पंखों से नील नापलूँ
मेघ घटा के पट न्यारे
एक गवाक्ष खुला छोटा सा
टँगे हुए सुंदर मनके।।
अनुपम !! मनमोहक जीवन्त शब्द चित्र ।
हृदय तल से आभार मीना जी आपके स्नेहिल सानिध्य से लेखन में उर्जा का संचार होता है,सदा स्नेह बनाए रखें।
Deleteसस्नेह।
खोल दिया जब मन बंधन से
ReplyDeleteउड़े भाव पाखी बनके
बिन झाँझर ही झनकी पायल
ठहर-ठहर घुँघरू झनके।
…कितना सुन्दर भाव पाखी👏👏👏
आत्मीय आभार उषा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
वाह सूंदर भाव पूर्ण रचना !!
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।