स्वागत करो नव बसंत को
स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी।
आवो सखी आई बहार बसंत
चहूँ ओर नव पल्लव फूले
कलियां चटकी
मौसम में मधुमास सखी।
तन बसंती मन बसंती
और बसंती बयार
धानी चुनरओढ़ के
धरा का पुलकित गात सखी।
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भी भरमाऐ सखी।
स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०२-२०२१) को 'स्वागत करो नव बसंत को' (चर्चा अंक- ३९६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार आपका मैं अभिभूत हूं मेरी पंक्तियों को सम्मान देने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
तन बसंती मन बसंती
ReplyDeleteऔर बसंती बयार
धानी चुनरओढ़ के
धरा का पुलकित गात सखी।
बहुत सुंदर, बहुत मधुर वासंती रचना कुसुम जी 🌹🙏🌹
मन आनंदित हुआ शरद जी बहुत मनभावन प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
वाह!खूबसूरत सृजन कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।
Deleteस्नेहिल प्रतिक्रिया।
नई दुल्हन को जैसे
ReplyDeleteपिया मिलन की आस
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भी भरमाऐ सखी।
वाह !! बसंत का अति मनमोहक चित्रण ,सादर नमन कुसुम जी
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
बहुत सुंदर सृजन,कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
अंतस पर बासंती थाप के संग मौसम के भी अधरों पर यही गान है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteमुग्ध करते उद्गार अमृता जी मन पुलकित हो गया।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी ।
Deleteसादर।
बसंत का स्वागत करती सुन्दर रचना के लिए आपको शुभकामनाएँ। सादर।
ReplyDeleteआभार आदरणीय, सुंदर शुभकामनाओं से मन हर्षित हुआ।
ReplyDeleteसादर।