दैदिप्य
व्याल के हर बंध में भी
है महकता प्रज्ञ चंदन
और घिसता पत्थरों पर
भाल चढ़ता है निरंजन।
उर समेटे यातनाएं
होंठ सौम्या रेख बिखरी
ताप सहकर धूप गहरी
स्वर्ण जैसे और निखरी
यूँ हथेली रोक लेती
चूड़ियों का मौन क्रंदन।।
विश्व की हर योजना में
तथ्य वांछित है निहित से
औ प्रकृति अनुमोद करती
धारणा होती विहित से
काल जब करवट बदलता
हास करता घोर स्पंदन।।
भाल पर इतिहास के भी
कृष्ण सी बहु छाप होती
बुद्धि जीवी बांचते हैं
सभ्यताएं कोढ़ ढ़ोती
और बदले रूप में भी
कौन बनता दुख निकंदन।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह . सुन्दर गीत भाषा कमाल है .
ReplyDeleteसादर आभार आपका स्नेह मिला,रचना गौरांन्वित हुई।
Deleteसादर।
ब्लाग पर सदा आपका इंतजार रहेगा।
बहुत सुन्दर और भावप्रवण गीत।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
भाल पर इतिहास के भी
ReplyDeleteकृष्ण सी बहु छाप होती
बुद्धि जीवी बांचते हैं
सभ्यताएं कोढ़ ढ़ोती
और बदले रूप में भी
कौन बनता दुख निकंदन।।.क्या खूब रचा है अपने ..अर्थपूर्ण रचना..
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी सक्रिय टिप्पणी से रचना गतिमान हुई।
Deleteसस्नेह।
अद्भुत
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteपाँच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
Deleteमें मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
कविता के चारों स्तंभ अलग अलग मनोभावनाओं को इंगित करते हुए एक निष्कर्ष को प्राप्त हो जाते है चमक बिखेरते हुए..बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपकी विहंगम दृष्टि से रचना के भाव और भी मुखरित हुए।
Deleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार ।
सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteसादर।
वाह! कमाल की अभिव्यंजना!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी, आपकी सराहना से रचना के काव्यगत भावों को संबल मिला।
Deleteसादर।
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
प्रशंसा के लिए शब्द न्यून प्रतीत हो रहे हैं कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteकभी कभी शब्दों की न्यूनता बहुत कुछ कहज्ञदेती है।
पुनः आभार, उत्साह वर्धन के लिए।
सादर।
बहुत-बहुत मधुर शब्द और भाव
ReplyDeleteझंकृत हुए मन की वीणा के तार
बधाई और धन्यवाद ! सुबह सुरीली हो गई.
आपके आने भर से झंकार गूंजने लगती है नूपूरं जी।
Deleteसदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह आभार आपका।
विश्व की हर योजना में
ReplyDeleteतथ्य वांछित है निहित से
औ प्रकृति अनुमोद करती
धारणा होती विहित से
काल जब करवट बदलता
हास करता घोर स्पंदन।।
शब्द-शब्द हृदयग्राही... सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई आदरणीया 🙏
बहुत बहुत आभार आपका वर्षा जी।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया रचना का उत्कर्ष है।
सस्नेह।
भाल पर इतिहास के भी
ReplyDeleteकृष्ण सी बहु छाप होती
बुद्धि जीवी बांचते हैं
सभ्यताएं कोढ़ ढ़ोती
गहन, गंभीर, यथार्थवादी रचना...🌹🙏🌹
रचना में निहित भावों पर गहन दृष्टि रचनाकार को आत्मतुष्टि देता है ।
Deleteबहुत बहुत स्नेह आभार आपका शरद जी ।
सस्नेह।
विश्व की हर योजना में
ReplyDeleteतथ्य वांछित है निहित से
औ प्रकृति अनुमोद करती
धारणा होती विहित से
काल जब करवट बदलता
हास करता घोर स्पंदन।।----बहुत बधाई
जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करतीं प्रतिक्रिया।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
वाह!लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार प्रिय बहना।
Deleteउच्च स्तरीय रचना।
ReplyDeleteअद्भुत शब्द सामंजस्य।
सादर।
बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई और लेखन को उर्जा मिली।
Deleteसस्नेह।
आपकी हर रचना मुग्ध करती है । हर बंध अद्भुत । गहन भाव लिए सशक्त सृजन ।
ReplyDeleteआप जैसे प्रबुद्ध साथी और पाठकों की मोहक टिप्पणियां रचना को और भी सरस कर देते है मीना जी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
ReplyDeleteचर्चा में हाजिर रहूंगी ।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
सस्नेह।
कमाल की रचना , शब्दों का इस्तेमाल लाजवाब , ब्लॉग पर आने के लिए धन्यबाद आपका , टिप्पणी बहुत ही सुंदर है, बहुत बहुत धन्यबाद
ReplyDeleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका ज्योति जी।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
आपके ब्लॉग पर आकर आपको पढ़ना सुखद अहसास है।
ढेर सा आभार।
यहां ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
कथ्य एवं शिल्प का सौंदर्य माधुर्य को स्वत:निस्सृत कर रहा है । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteआपकी मोहक प्रतिक्रिया ने रचना को नव दिशा प्रदान की है अमृता जी।
Deleteसस्नेह आभार।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌👌
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सखी। सस्नेह।
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