विधाता छंद 1222-----
लेखनी के रूप
कलम लिखती मसी बहती,नयी रचना मुखर होती।
लिखे कविता सरस सुंदर, नवल रस के धवल मोती।
चटकते फूल उपवन में ,दरकती है धरा सूखी।
कभी अनुराग झरता है, कभी ये ओज से भरती।।
हवा से तेज ये दौड़े, सदावट के खटोले पर।
दवा का घूंट भी ये है, सुधा का है सरस ये वर।
समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।
गुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।
ReplyDeleteगुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।
सत्य लिखा दी,अत्यंत सुंदर भाव समेटे सारयुक्त सृजन दी।
सादर
सस्नेह प्रणाम।
ढेर सा स्नेह बहना आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर!
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी ।
बहुत सुन्दर और सारगर्भित मुक्तक।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
हवा से तेज ये दौड़े, सदावट के खटोले पर।
ReplyDeleteदवा का घूंट भी ये है, सुधा का है सरस ये वर।
समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।
गुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,कुसुम दी।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसक्रिय सुंदर अल्फाज़ आपके प्रसन्नता हुई ।
सस्नेह।
बिल्कुल सच
ReplyDeleteजी रचना के भावों को समर्थन मिला।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सादर।
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteआलोक जी बहुत बहुत आभार आपका हृदय तल से।
Deleteसादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आपका ।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७-०२-२०२१) को 'नर हो न निराश करो मन को' (चर्चा अंक- ३९९०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर,सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सादर आभार आपका सर। उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने, हर बात को सुंदर ढंग से रक्खा गया है,सादर नमन, बधाई हो आपको
ReplyDeleteसमर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया ज्योति जी,रचना को प्रवाह मिला सस्नेह आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
लेखनी की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसुंदर सृजन को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सादर।
ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
छोटा-सा लेकिन लेखनी की महत्ता को रेखांकित करता अति सुन्दर गीत ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी,छंद बद्ध लेखन पर समर्थन उत्साह वर्धन करता है।
Deleteसादर।
समेटे विश्व की पीड़ा, बहादे प्रेम की गंगा।
ReplyDeleteगुणों की खान होती है, चले जब लेखनी सर सर ।।
क्या बात है !सत्य वचन कुसुम जी,सादर नमन आपको
सुंदर कामिनी जी मोहक ढ़ंग आपका सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
खूबसूरत सच
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
Deleteकलम भावों को स्वरूप देती है वर्ना भाव मूर्त्त ही रहते है।
समर्थन के लिए सादर आभार आपका।
कलम लिखती मसी बहती,नयी रचना मुखर होती।
ReplyDeleteलिखे कविता सरस सुंदर, नवल रस के धवल मोती।
बहुत खूब !!
मनमोहक सृजन ।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी, सुंदर सराहना आपकी उत्साहवर्धक और नव उर्जा देती प्रतिक्रिया आपकी सदा मेरे लेखन प्रोत्साहित करने केलिए सस्नेह आभार।
Deleteवही लेखनी सार्थक है जो विश्व प्रेम के गीत रचे। सुंदर, सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन 🙏🙏❤❤🌹🌹
ReplyDeleteढेर सारा आभार रेणु बहन, सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
लेखनी ने क्या क्या नहीं लिखा ..लेखनी की सार्थकता बहुत सुंदर नजरिए से बयान की आपने.।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह।
खूबसूरत रचना । इस छंद की क्या विशेषता है ? जानने की उत्सुकता है ।।
ReplyDeleteसंगीता जी बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteविधाता छंद १२२२,१२२२,१२२२,१२२२ = २८ मात्रा से लिखा जाने वाला छंद है जिसमें १,७,१५,२२वीं मात्रा लघु अनिवार्य है और अंत दो गुरु से होता है चार पद में १ २ ४ समतुकांत होने अनिवार्य है ३री पंक्ति का तुकांत भिन्न होना चाहिए।
सस्नेह आभार।